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टेम्परिंग शब्द का मतलब है किसी भी पदार्थ को गर्म या ठंडा करने पर उसका गाढ़ापन, चिरस्थायित्व या कड़कपन को और भी उन्नत करना। टेम्पर्ड चॉकलेट बहुत चमकदार सुगठित और शरीर के तापमान पर धीरे-धीरे गलने लगता है। यह चॉकलेट अच्छा होता है और अच्छे क्वालिटी के कैन्डीज़, कैन्डी बार इससे ही बनते है।
सख्त चॉकलेट को उच्च आंच में टेम्परिंग करके गलाया जाता है मगर यह ध्यान रहे कि कोको बटर का क्रिस्टल टूट जाये। यह तापमान 45 डिग्री सेंटिग्रेड से 48 डिग्री सेंटिग्रेड के बीच होना चाहिये। जब चॉकलेट पूरी तरह से पिघल जाये तब उसे 28° सेंटिग्रेड तक ठंडा करना चाहिये। इस तापमान पर फिर से क्रिस्टल्स् बनना शुरु हो जाते हैं, जिस से कि चॉकलेट को अंत में फिर से ठोस किया जाता है और उस पर काम किया जा सकता है। सभी चॉकलेट - व्हाईट, मिल्क और डार्क को टेम्पर किया जाता है।
जब चॉकलेट ठंडा हो जाता है तब जो चॉकलेट का कोको बटर का क्रिस्टल होना फिर से शुरू हो जाता है, वो स्थाई क्रिस्टल होता है। इससे चॉकलेट को संरचना मिलती है और जिसके कारण चॉकलेट चमकदार, नरम और अच्छे स्नैप के सेट हो जाने के बाद सही तरह से चॉकलेट बन जाता है। चॉकलेट, जिसे अच्छे से टेम्पर न किया गया हो, चपटा और फीका दिखता है। इसमें वह शार्प “स्नैप”, जो टेम्पर्ड चॉकलेट में होता है, नहीं होता है और यह गलने पर भी उतना नरम नहीं होता।
टेम्परिंग कई तरह से किया जाता है, हाथ से भी किया जाता है और इसके लिए मशीन भी है। अगर हाथ से करना है तो अच्छा डिजिटल थर्मोमीटर से तापमान की जाँच कर लें। जो अनुभवी चॉकलेट मेकर होते हैं वह महसूस करके ही पता लगा लेते हैं, लेकिन थर्मोमीटर सही-सही बताता है। हाथ से टेम्परिंग करने पर गले हुए चॉकलेट को मार्बल के सतह पर डालकर कड़छी से तब तक चलायें जब तक कि वह ठंडा न हो जाये। कई बार ज्यादा गले हुए चॉकलेट को फिर से चॉकलेट में डालकर समाविष्ट किया जाता है और काम करने योग्य तापमान में लाया जाता है।