कल्पवृक्ष नारियल

हिन्दु धर्म में नारियल को इच्छित कल्पवृक्ष के रूप में माना जाता है। यह सभी धार्मिक रीति-रिवाज़ों का

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kalpavriksha coconut

हिन्दु धर्म में नारियल को इच्छित कल्पवृक्ष के रूप में माना जाता है। यह सभी धार्मिक रीति-रिवाज़ों का अनिवार्य अंग है। हिन्दुओं का मानना है कि नारियल सबसे विशुद्ध रूप है जो भगवान को प्रस्तुत किया जाता है। कोकोनट पाल्म्स को स्वर्ग के रूप में देखा जाता है। यह माना जाता है कि जिसके बगीचे में नारियल का पेड़ उपजाया जाता है, उसे पानी और भोजन, बर्तन और कपड़े खुद के लिए ताप स्रोत और बच्चों के लिए आश्रयस्थल भी मिलता है। सुंदर लगने के अलावा एक और बात है कि इस पेड़ का हर एक अंग किसी-न-किसी चीज़ के काम आता है।

यह नट सबसे विशुद्ध है

जब हम छोटे थे मेरी माँ हमेशा कहती थी कि जो मीठा पानी छिलके के भीतर होता है मानव के स्पर्श से दूर अमृत जैसा विशुद्ध होता है। यह पेड़ के नीचे से लेकर ऊपर के स्तर से उतारा जाता है। यह कहा जाता है कि नारियल का जो वाहृ रूप फाइबर से मोटा-मोटा बुना हुआ होता है वह ईष्या, द्वेष, लोभ, स्वार्थ और मानव के पाप का प्रतीक होता है। नट तक पहुँचने के पहले फाइबर को निकालना पड़ता है और तोड़ने के बाद पानी और विशुद्ध सफेद अंश मिलता है।

क्या आपको पता है उसकी तीन स्पष्ट नेत्र त्रिमूर्ति का प्रतीक होते हैं - ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर जो सृष्टि, संरक्षण और विघटन का प्रतीक है। आंखें मानव के तीन आंखों को प्रस्तुत करते हैं - दो शारीरिक आंखे और तीसरा भीतरी नेत्र जो आंतरिक चक्षु को द्दोतित करता है और चेतन जो अवस्था में हमें गलत और सही फैसला करने में मदद करता है बाह्य रूप में जो सच मुखौटा में आवृत होता है।

नारियल आया कहाँ से है

इस आश्चर्यभरे नट के उद्भव को लेकर बहुत मतभेद है। 545 ए.डी. में इसके पहले प्रमाण का रिकार्ड उपलब्ध है, जब एक इजिपस्यिन कॉसमोस ने भारत और श्रीलंका में देखा था। उसके बाद मार्को पोलो ने इन्डोनेसिया में इसको खोज निकाला| 1995 में नारियल फल के फॉसिल के बारेमें उत्तरी क्वींसलैंड में जानकारी मिली थी, जहाँ लगभग दो मिलयन पहले कोकोनट पाल्म्स के होने के संभावना को माना जाता है।

संस्कृत के लेखन में 4 शताब्दी बी.सी.में नारियल का उल्लेख मिलता है। तमिल साहित्य में पहली शताब्दी ए.डी. से चौथी शताब्दी ए.डी. के बीच इसका उल्लेख मिलता है। हिन्दु महाकाव्य रामायण और महाभारत और पुराण में भी नारियल का उल्लेख मिलता है।

नारियल की खेती

आप समझ सकते हैं मैं क्या कह रहा हूं अगर आप कोंकण प्राँत में घूमने जायेंगे तो देखेंगे कि पूरे समुद्री तट में सैंकड़ों नारियल वृक्ष फैले हुए हैं और यह दृश्य देखकर ही विश्वास कर पायेंगे कि यह कितने सुंदर लगते हैं। यह आश्चर्यभरा नट लगभग सभी दक्षिणपूर्वी और दूरवर्ती पूर्वी एशिया के देशों में पैदा होता है। इसके अच्छे उत्पादन के लिए ऑरगैनिक मिट्टी की ज़रूरत होती है। वर्षा के मौसम में नारियल ज़्यादा उपजता है। नारियल के पेड़ के बीजारोपण से लेकर फल उत्पादन का समयांतरल पाँच वर्ष का होता है। परिपक्व पेड़ सालाना छह बार फसल देता है, जिससे लगभग 3,500 नारियल प्रति एकड़ पेड़ से उतारा जाता है।

इसके प्रयोग अनगिनत है

अब मैं नारियल के पौधे का इस्तेमाल कितने विभिन्न प्रकार से होता है, यह बताने जा रहा हूं।

पहले पाक-शैली संबंधित इस्तेमाल के बारे में व्याख्या करता हूं।नारियल पानी सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं होता है वरन् पौष्टिक भी होता है। इसमें प्राकृतिक रूप से चीनी, विटामिन और मिनरल उपस्थित रहता है। इसके पानी का मज़ा पूरे वर्ष भर लिया जा सकता है लेकिन गर्मी के मौसम में ज़्यादा लाभकारी होता है। इसमें मूत्रवर्धक गुण होता है।

इसका सफेद अंश व्यंजन में पीसकर डाला जाता है या नारियल के दूध या खरोंच कर व्यंजन के स्वाद/सजावट को बढ़ाने के लिए डाला जाता है। नारियल का इस्तेमाल नमकीन और मीठे दोनों व्यंजनों में होता है। जब से कोंकण प्राँत में नारियल का उत्पादन होने लगा है दक्षिण भारतीय जैसे तमिलियन और आंध्रिय पाकशैली में इसका इस्तेमाल होने लगा है।

नारियल तेल से निकालकर वह तेल दक्षिण पूर्वी एशिया और भारत में इस्तेमाल होता है। ज़्यादातर तेल बालों के लिए इस्तेमाल होता है। केरला, कर्नाटक और तमिलनाडु में खाना बनाया जाता है। यह माना जाता है कि इस तेल से बाल स्वस्थ, चमकदार और उज्जवल होते है।

नारियल के छिलके से बहुत सारी चीज़ें बनती हैं। मेज़ पर खाने के बर्तन, बाउल, ट्रे, चम्मच, करछुल, फैशन की चीज़ें जैसे - चूड़ी, झुमका, बटन आदि बनाये जाते हैं। सिर्फ छिलके ही नहीं छाल/भूसे से बहुत काम होता है, आग जलाकर पानी गरम किया जा सकता है, यहाँ तक बाहर भी इसके द्वारा इंधन का प्रयोग कर खाना बनाया जा सकता है।

कोकोनट पाम का नली वाला भाग ब्लॉक में काटकर छत को पाटा जाता है। इससे फर्नीचर भी बनाया जाता है।

नारियल के पत्ते के मध्यभाग को काँट-छाँटकर नारियल का झाड़ु बनाया जाता है।

कोको नट फाइबर या भूसा से कॉयर/नारियल का जटा दक्षिण भारत में बहुत बनाया जाता है जिससे रस्सी, पदकालीन, बैग, फर्श का ब्रश और दूसरे हस्तकला के चीज़ें बनायी जाती हैं। नारियल के पत्ते से बास्केट, बैग, मैट, बेल्ट आदि भी बनाये जाते हैं।

सूखे नारियल के पत्ते से फर्श के पदार्थ बनाए जाते है जो अब भारत और दूसरे जगहों के गरीब इस्तेमाल करते हैं। इन दिनों अमीर या रेस्तरां और हॉलिडे रेजॉर्ट में आभिजात्य के कथन के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

इसके अलावा नारियल के पेड़ के दूसरे चीज़ों से साबुन, वाइन, टेक्सटाइल, बास्केट, कप और बाउल, औषधी, नाव और भवन निर्माण के समान बनाए जाते हैं।

इसके औषधीय गुण

विटामिन बी और मिनरल का अच्छा स्रोत है। इसमें उच्च मात्रा में कैलोरी होने के बावजूद आसानी से हजम हो जाता है।

उच्च क्वालिटी का प्रोटीन रहता है साथ ही शरीर के लिए ज़रूरी एमिनो ऐसिड रहता है।

नारियल पानी में विटामिन बी रहता है जो सिर्फ ताज़गी ही प्रदान नहीं करता है बल्कि पेट के लिए अच्छा होता है।

सूखा नारियल हिचकी, वमन और बदहज़मी से राहत दिलाता है।

नारियल तेल सिर्फ बालों के लिए अच्छा नहीं होता है बल्कि शरीर के मालिश के लिए भी अच्छा होता है। ज़ख्म के उपचार के लिए भी अच्छा होता है।

एक सावधानी की बात है, नारियल तेल में सैचुरेटेड फैट उच्च मात्रा में होता है और इसलिए किफ़ायत से इसका उपयोग करना चाहिए।

नारियल में उच्च मात्रा में कैलोरी रहता है, लेकिन सोचकर चलें। रोज़ इसका सेवन नहीं भी कर सकते हैं। संयमित मात्रा में खायें और स्वाद का आनंद उठायें।