पपीता खायें और स्वस्थ रहें

पपीता के अच्छाई को बताने के पहले यह बता दूं कि पपीता अकेला ऐसा फल है जो ब्रेस्ट कैन्सर को रोकता है।

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पपीता के अच्छाई को बताने के पहले यह बता दूं कि पपीता अकेला ऐसा फल है जो ब्रेस्ट कैन्सर को रोकता है। यह मिथक भी नहीं है, यह ज्ञान वैज्ञानिकों के अध्ययन के फलस्वरूप प्राप्त हुआ है। मेक्सिको में चौदह तरह का प्लान्ट फूड का ज़्यादातर खपत होता है जिसका अध्ययन हुआ है। इनमें आम, अनारस, अंगूर, टमाटर, आवोकाडो, ब्लैक सापोटे, पपीता के साथ और भी कुछ फल है। यह पाया गया है कि पपीता में कैन्सर के सेल को बढ़ने से रोकने का प्रभावकारी गुण होता है। पपीता लाइकोपेन का पावर हाउस होता है जिसमें कैन्सर से लड़ने का प्रभावकारी गुण होता है। कैरेटॉनाइड की उपस्थिति से ही पका पपीता का रंग गहरा नारंगी होता है। यह केवल कैरोटीन ही नहीं है, यह लाइकोपेन से भी भरपूर होता है जो इसे ऑक्सिजन और फ्री रैडिकल के तरफ प्रभावशाली बनाता है। 

पपीता आया कहाँ से है
पपीता के उद्भव-स्थल के बारे में ठीक से मालुम तो नहीं है लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि ये दक्षिण मेक्सिको और सेंट्रल अमेरिका का स्थानीय है। पपीता मेलन जैसा फल है जो पीला-नारंगी गुदे वाला और पतली त्वचा वाला होता है| त्वचा हरी से नारंगी से गुलाब के रंग की होती है। यह है पका पपीता मगर हम कच्चे पपीता के बारे में बात करेंगे। कच्चे पपीता का रंग हरा होता है और गुदा सफेद। बीज काला और हल्का जेलटीन जैसा होता है। पपीता का पेड़ बीज से बढ़कर बीस फुट का होता है और अठारह महीने से कम समय में फल देने वाला पेड़ होता है। फल का आकार आधा किलो से लगभग नौ किलो तक का होता है।

पपीता में रोग या संक्रमण के लिए उपचारक गुण

प्रोटिओलाइटिक एन्ज़ाइम रहने के कारण पेपिन आंत के पैरासाइट को नष्ट करने में सक्षम होता है, जो साधारणतः प्रोटीन से बना होता है। शरीर से आंत का पैरासाइट निकालने के लिए आधा कप पपीता के रस के साथ खीरा या हरा बीन्स का जूस समान मात्रा में बारह बार हर घंटे में पीना पड़ता है।

पपीता में फाइब्रीन रहता है, जो दूसरे प्लान्ट में नहीं पाया जाता है। फाइब्रीन रक्त का थक्का बनने की संभावना को कम करता है, शरीर में रक्त कोशिकाओं के क्वालिटी को उन्नत करता है, शरीर में रक्त संचरण के द्वारा रक्त संचार की क्षमता को ठीक रखता है। फाइब्रिन दिल का दौरा पड़ने की संभावना को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्रोटिवोलाइटिक एन्ज़ाइम में जो फाइब्रिन रहता है वह रक्त का थक्का बनने से रोकता है जो लंबे समय तक चलने के कारण कभी-कभी पैरों में होता है। मैं तो यह सलाह दूंगा कि जो लोग डेस्क पर बैठकर सारा दिन काम करते है उनके लिए सहुलियत प्रदान करता है।

यही नहीं प्रोटियोलाइटिक एन्ज़ाइम वाइरस, ट्यूमर, एलरजेन्स, यीस्ट और फंगस के विविध रूप के आवरण को हजम और नष्ट करता है। एक बार यह आवरण जब नष्ट हो जाता है तो ट्यूमर और दूसरे ऑरगैनिज़म असुरक्षित हो जाते हैं और प्रतिरोधक प्रणाली द्वारा आसानी से देख-रेख किया जाता है। प्रोटीन जब हजम नहीं होता है, तब बिना हजम हुआ प्रोटीन गट को छेद करता है और ब्लड स्ट्रीम को प्रभावित करता है जहाँ प्रतिरोधक प्रणाली आक्रमण के रूप में काम करता है। अगर बहुत सारा बिना हजम हुआ प्रोटीन तैरने लगता है तब प्रतिरोधक प्रणाली भी भार वहन नहीं कर पाती है और दूसरे काम भी नहीं कर पाती है। प्रोटियोलाइटिक एन्ज़ाइम इस प्रोटीन को हजम करवाता है और प्रतिरोधक प्रणाली को मुक्त करता है।

किचन में पपीता के विभिन्न रूप

पपीता मुझे होटल के दिनों की याद दिलाता है। सलाद टेबल में सेंटर पीस के रूप में पपीता का बहुतायत इस्तेमाल होता है। यह फल कलाकृति के लिए सुंदर तो लगता है मगर ठोस होना चाहिए। कलाकृति के लिए पका पपीता ज़्यादा पसंद किया जाता है क्योंकि यह चमकदार नारंगी रंग का होता है।

पके पपीते की बात हो गई, अब कच्चे पपीते की बात करते हैं। कच्चा पपीता मीट को मुलायम करता है। पेपिन एन्ज़ाइम फाइबर को आंशिक रूप से तोड़ता है। पेपिन का इस्तेमाल जख्म़ के जगह, रैश के जगह, जलने के जगह, यहाँ तक कि दंश के जगह इस्तेमाल किया जाता है। कच्चे पपीते की चटनी पापड़ी और फाफड़ा (परम्परागत गुजराती स्नैक्स) के साथ परोसा जाती है। दक्षिण भारत में कच्चे पपीते से बहुत सारे व्यंजन बनाये जाते हैं। मेरी माँ कच्चे पपीते के पराठे और पपीते के लौंज बनाती है।

फल के मामले में मेरे बच्चों को खुशामद करना पड़ता था। मैं ताज़े फलों को क्यूब्ज़ में काटकर नींबु का रस डालकर फैन्सी टूथपिक के साथ परोसता था। पूरे टुकड़ों को नाव का आकार देकर अंत में चेरी डालकर देता था। फिर मैं पपीता, नारंगी, शहद, नींबु का रस, काला नमक और बहुत सारा बर्फ के साथ स्लश् बनाकर देता था। सोचिए, कौन-सा पसंद करते थे? तीनों, इस तरह लड़ाई जीत ली जाती थी।