सिन्ध में साधारणतः सोमवार और शनिवार को जियारास या उमास के लिए व्रत किया जाता है। सत्यनारायण के उपवास के समय और नौ दिनों का एकान्यास, सिर्फ एक वक्त खाना खा सकते है।
चेती चंद
यह जल देवता (वरुण देवता) का जन्मोत्सव मनाया जाता है, साई ऊठेरोलाल के नाम से प्रचलित है। सिन्ध में नए साल के शुरु को चेती चंद के रुप में मनाया जाता है। कुछ व्यापारी इसी दिन नया खाता खोलते हैं।
सागरा
सिन्धी लोग साधारणतः विदेशों में रहते है इसलिए पत्नियाँ अपने पति के स्वास्थ्य के लिए चिन्ता करती है। इसलिए वे सावन महिने के चारों सोमवार को उपवास करके पूजा करती है। मीठे चावल बाँटती है और पवित्र धागा पुजारी से बंधवाती हैं।
तीजरी
यह सावन के महीने में होता है जब विवाहित महिलायें और लड़कियाँ अपने हाथों और पैरों को मेंहदी से सजाती हैं, पूरे दिन उपवास करती हैं, झूला झूलती हैं और प्यार के गीत गाती हैं। रात को चाँद देखने के बाद ही व्रत तोड़ती हैं।
अखन तीज
इस दिन मिट्टी के बर्तन में पीने का पानी रखा जाता है और हर किसी को पानी पिलाया जाता है। यह दिन महत्वपूर्ण इसलिए है कि प्यासे को पानी पिलाया जाता है। रास्ते के हर कोने या नुक्कड़ पर शरबत, सेब के टुकड़े के साथ राहगिरों को प्रसाद के रुप में दिया जाता है। इस दिन यह प्रथा है कि पुजारी को नया मिट्टी का बर्तन और फल भेजा जाता है।
उन-माटयो
सावन के महीने में, अनाज दाने में बदल जाता है, गेहूं और चावल की जगह पर बेसन की चपाती बनाकर खाते है।
जन्माष्टमी, रामनवमी और शिवरात्री
भगवान कृष्ण का जन्म मध्यरात्री को हुआ था, मंदिरों में मध्यरात्री से ही भजन-कीर्तन शुरु हो जाता है। राम नवमी के दिन राम का जन्म हुआ था। शिवरात्री के दिन लोग थन्डाई भांग के साथ पीते हैं, यह बनाने के बाद महादेव के मंदिर में उन्हें अर्पित किया जाता है।
इस दिन अभिभावक लड्डू और तिल की बनी चिक्की विवाहित बेटियों के घर भेजते है।
दियारी
दिवाली के दो दिन पहले से लोग दिया जलाने लगते है, ‘धनतेरस’ के दिन से। बाजार भरा रहता है। दोस्तों और रिश्तेदारों क यहाँ लोग मिलने जाते है, मिठाई का आदान-प्रदान होता है।
काटी का गियारास
इस दिन लोग दान देते है। पूरा बाजार भिखारी और जरुरतमंदों से भरा रहता है, जो मदद के लिए कपड़ा फैलाये रहते है। लोग अपने हैसियत से रुपया,फल, भुगरा देते है।
लाल लोई
इस दिन बच्चें अपने दादा, दादी, नाना, नानी, बूआ या बड़ों से छड़ी लेकर रात को बोनफायर करते हैं और लोग नाच-गान, खेल कर आनंद उठाते है। जिन औरतों की मन्नतें पूरी होती है वे नारियल चढ़ाकर उसका प्रसाद बाँटती है।
सिन्धी और भी कई त्योहार मनाते हैं, रक्षाबंधन, दशहरा, दिवाली, होली---- अब आप सिन्धियों के भोज का आनंद उठाने के लिए तैयार रहें....