राजकीय कश्मीरी पाकशैली
रॉयल्टी मतलब भव्यता और हम उत्तर से कश्मीर के परम्परागत पाक-शैली के इतिहास, वाज़वान, को जानने के लिए पढ़ने की ज़रूरत है। इसे जानने के लिए 14 वीं शताब्दी पीछे भारत में तुगलक साम्राज्य के मंगोल शासक तिमुर का शासन था। जिसके परिणामस्वरुप सुशिक्षित मज़दूर, रसोईया, समरकंद से कश्मीर भेजे जाते थे। उन रसोईयों को वाजवास कहा जाता था जो कश्मीर के मास्टर शेफ थे। वाजवान, राजकीय पाकशैली जानने वाले, वे ईरानियन, अफगान और केन्द्रीय एशिया के पाकशैली से प्रभावित थे, उनकी अपनी एक अलग पहचान थी, और वे कश्मीरी बॉनकेट है। वे सचमुच ही शानदार और स्वादिष्ट पकाते थे: छत्तीस तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ तबाखी मास, रोगन जोश, रिस्ता, आव गोश्त, धानिवाल कोरमा और गुश्तबा। फिर्नी और कालवा से स्वादिष्ट व्यंजन से भोज का अंत होता था।
राजकीय राजस्थानी व्यंजन
राजस्थान राजकीय रसोई में बहुत सारे रसोईए काम करते थे, जिन्हें महाराजा या पुरोहित कहा जाता था, राजकीय परिवार के लिए ही खाना बनाते थे। रेसिपी भी राज़ ही रहते थे सिर्फ परम्परानुसार वंशजों को प्राप्त होती थीं। कोई भी लिखित रिकार्ड नहीं रखा जाता है, जिसके कारण कुछ रेसिपी तो गुम हो गईं हैं। राजकीय अतिथियों के लिए खाना बनाना सम्मान की बात थी, वे नए-नए व्यंजनों को बनाने की कोशिश करते थे, जो अद्वितीय होता था। चिकन और मोर को सोने चांदी की ख़ुराक देने के सामने. मोती और रुबी फीका पड़ जाता था। व्यंजन के पीछे खर्चा मुगलों की तरह ही किया जाता था।
सोने और चाँदी के बर्तनों, कमरे की सजावट और मांस से बने व्यंजन राजकीय परिवेश की सृष्टि करते थे। सलवार के महाराजा का अद्वितीय सृष्टि जंगली मांस है। कैम्प के किचन में शिकार के खेल से प्राप्त मांस स्वादिष्ट सामग्रियों के अभाव में शुद्ध घी, नमक और बहुत सारे लाल मिर्च डालकर पकाया जाता था। भेड़ और मुर्गी के लिए भी इन सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है। राजस्थानी व्यंजन जो आज भी याद किए जाते हैं वे हैं दाल, बाटी और चुरमा। कुछ और व्यंजन है बंजारी गोश्त, दही कीमा समोसा, मछली जैसा मंडी, पद्मपूरी मुर्ग। कुछ शाकाहारी प्रसिद्ध व्यंजन है शाही गट्टे की सब्जी, और केर सांग्री। जल अभाव के कारण, राजस्थान में ज़्यादा दूध, बटरमिल्क और घी का इस्तेमाल खाना बनाने में होता है। राजस्थान का व्यंजन मसालेदार होते हैं लेकिन मीठे में लाप्सी, घेवर, मावा मिस्री, मूंग दाल हलवा और जूसी लड्डु संतुलन बनाएं रखता है।
अवध की राजकीय पाकशैली
अवध और तहजीब की भूमि, लखनऊ, अवधी पाकशैली की केंद्रीय भूमि है। यह पाकशैली मुगलों और नवाबों के पाकशैली और व्यंजन से प्रभावित है। अवध के बावर्ची और रकबदार कम आंच पर पकाने के कला के आविष्कारक है, जिसे दम तकनीक कहा जाता है। इस पर विभिन्न व्यंजन बनते हैं, जैसे- कबाब, कोरमा, बिरयानी, नली, कुल्चा, ज़र्दा, शीरमल आदि। मटर और पनीर के व्यंजनों पर इलाइची और केसर को डालकर दसतरखान फैलाया जाता है। लखनऊ कबाब के लिए प्रसिद्ध है। आजकल टुण्डे के कबाब के नाम की विशेषता है क्योंकि एक हाथ के शेफ ने इसे बनाया था। इस कवाब का अद्वितीयपन यही है कि मसाला परिवार का राज़ बना रहता है और घर की औरतों द्वारा बनाया जाता है।
राजकीय कोल्हापुरी पाकशैली
मैनें कुछ दिन कोल्हापुर में बिताएं कोल्हापुर के व्यंजनों को जानने के लिए। मैं कैसे भूल सकता हूँ कोल्हापूर के महाराजा का अतिथी सत्कार.. जिसने मेरे दिल के किसी कोने को छु दिया है। मुझसे पहली मुलाकात में उन्होनें मुझे ‘सूपशास्त्र’ की एक प्रति उपहार में दी, जिसमें बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजनों का संग्रह है। यह पारसी संग्रह है जिसका अनुवाद उनके किसी पूर्वज ने किया होगा। 1969 के बाद कुछ प्रतियाँ छापी गईं और कुछ दोस्तों और रिश्तेदारों की बीच बाँटी गईं।
कोल्हापूरियों को अपनी पाक-शैली पर गर्व है, उनमें मटन कोल्हापुरी, चिकन कोल्हापुरी या वेजिटेबल कोल्हापुरी है। कोल्हापुर व्यंजन में ज़्यादातर लोग, कोल्हापुर के बाहरी लोग- गर्म मिर्ची वाले स्वभाव के होते हैं। कोल्हापुरी व्यंजन ही बिना तर्क के स्वादिष्ट होता है।
दूसरी अद्वितीय चीज़ यह है कि वे एक तरह का पतला रसा बनाते हैं, जो बहुत ही स्वादिष्ट होता है। रंग के ऊपर नाम निर्भर करता है - तम्बाला रसा और पंडारा रसा जो डिश के केंद्र स्थल पर रहती है। दाल, सब्जी, भाखरी, बहुत तरह के अनाज और चावल का इस्तेमाल मटन बनाने में होता है जिसको कोल्हापुरी बड़े ही चाव से खाते हैं।
राजकीय हैदराबादी पाकशैली
हैदराबादी क्युज़ीन भी बेहतर है। यह निज़ामी पाकशैली से आकर हैदराबादी दसतरखान से होते हुए आंध्र से प्रभावित है। हैदराबादी खाने के लिए ही जीते हैं! बहुतों को पता नहीं है कि पहले निज़ाम, असफ जाह ने हैदराबादी राज्य में कुलचा (ब्रेड) का झंडा लगाया था।
बहुत लोगों की गलत धारणा है कि हैदराबादी व्यंजन मांसाहारी होते हैं। नान के साथ निहारी नाश्ते में लोकप्रिय है। हलीम हैदराबादी व्यंजन में आता है। शाकाहारी व्यंजन बहुत ही विस्तृत रुप से विद्दमान है, बहुत तरह के अचार और चटनी व्यंजन के स्वाद को बढ़ा देते हैं जैसे - मिर्ची का सालन। वे दाल कई तरह से बनाते हैं। दंतकथा है कि महाराजाओं में एक महाराज सर किशन परशाद को खाना पकाना में मज़ा आता था और 52 तरह से दाल बनाते थे।