राजस्थानी पाकशैली को वहाँ की जीअमॉरफॉलोजी और राजनीतिक परिस्थिति के साथ क्षेत्रियता प्रभावित करती है।राजस्थानी खाना मूलतः शाकाहारी होता है और विभिन्न तरह का स्वादिष्ट व्यंजन होता है जिसको खाने के पहले ही मुँह में पानी आ जाता है। घी के साथ राजस्थानी व्यंजनों में मसालों की प्रधानता होती है जिससे व्यंजन बहुत ही स्वादिष्ट बनती है। बहुत तरह की करी बनती है साथ ही स्वादिष्ट मिठाईयाँ भी बनती है।
भारतीय दूसरे पाकशैली के तुलना में राजस्थानी पाकशैली बहुत ही संवेदनशील होता है। यहाँ के लोग मांसाहारी भोजन का भी लुत्फ़ उठाते है जिसमें चिकन, मेमना, और शिकार होता है जिसमें जानवर और पक्षी आते है जैसे- सूअर, हरिण, मोर, बटेर,बत्तख, चेड़, खरगोश और यहाँ तक कि ऊंट आदि भी इसमें शामिल है। शाकाहारी व्यंजन दो तरह का होता है, जैसे- साधारण आम जनता के लिए जिसमें मसाला और हर्ब रहता है और मारवाड़ी जैनियों का खाना जिसमें प्याज, लहसुन का इस्तेमाल नहीं होता है यानि जो चीजें मिट्टी के अंदर होती है उसका वे इस्तेमाल नहीं करते है सिर्फ अदरक और मूंगफली का इस्तेमाल करते है।
राजस्थानी के शाही रसोई में बहुत सारे रसोइए रहते है जिन्हें महाराज या पुरोहित कहते थे, जो राजपरिवार के लिए खाना बनाते थे। उनकी द्वारा बने व्यंजनों उन विशेष महाराज तक ही राज रहते थे जो बाद में उनके बेटों या परिवारजनों को ही मालुम होता था। इसलिए कुछ व्यंजन राज ही रह गये है, क्योंकि उनका कुछ भी उल्लेख नहीं मिलता है। शाही अतिथि के लिए खाना बनाना सम्मान की बात होती थी, उनका मन जितने के लिए महाराज व्यंजनों के साथ नए-नए अनुसंधान करते थे, जो व्यंजनों को अनोखापन प्रदान करता था। इसलिए बहुत मात्रा में सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता था। चिकन और मोर सोने, मोती और माणिक मे परोसें जाते थे, तभी वे शाही मेज़ के अनुकूल होते थे। राजस्थानी व्यंजन मुगलों के व्यंजन के समान ही लैविश़ होता था।
राजस्थानी व्यंजन का एक तथ्य बहुत रोचक है, वह यह है कि मीठा का आनंद सभी उठा सकते है, और मुख्य भोजन के पहले, या खाने के दौरान या बाद में मीठा का लुत्फ़ उठा सकते है, क्योंकि साधारणतः डेजट् मुख्य भोजन के बाद दिया जाता है। इसलिए राजस्थान में मीठा व्यंजन को ‘डेजट्’ नहीं कहा जाता है। राजस्थानी परम्परा में ‘सेल्फ सर्विस’ को बुरा माना जाता है, वहाँ की परम्परा यह है कि मेहमान को मेज़बान स्वयं ही परोस कर खिलायेगा।
राजस्थान रेगिस्तान अंचल में पड़ता है, और वहाँ पानी और ताजे हरे सब्जी के कमी के कारण खाना में मूलतः दूध, घी और मक्खन का इस्तेमाल ज़्यादा होता है, पानी के इस्तेमाल को कम करने के लिए। सूखा दाल, बीन्स, बेसन, पावडर किया हुआ दाल, मसालों में धनिया, लहसुन, हल्दी, आदि का इस्तेमाल सांगरिया, गट्टे की सब्जी, पापड़ और बहुत तरह की चटनियों में होता है। दूसरे व्यंजनों में गट्टे का साग, खिचड़ा, दाल बाटी का चुरमा आदि आता है और स्नैक्स में भुजिया आता है जिसके लिए बिकानेर विख्यात है, जोधपूर की कचौड़ी और मीठा में घेवर, मालपुआ, दिल जानी, मिस्री मावा, सोहन हलवा आदि आता है।
मांसाहारी व्यंजनों में राजस्थानी कवाब़ को सुले कहते है जो ग्यारह विभिन्न तरीकों से बाबिक्यू किया जाता है। सूअर के मांस का अचार स्वादिष्ट माना जाता है। इग्जॉटिक घी और क्रीम मेनकोर्स में आम होते है जैसे सफेद मांस, मांस की कढ़ी, कढ़, बेसन के गट्टे और बहुत कुछ। राजस्थान का सबसे लोकप्रिय मांसाहारी व्यंजन है लाल मांस, जो बहुत ही गर्म व्यंजन होता है, इस व्यंजन को वे ही लोग खा सकते है जिनमें पत्थर हजम करने की शक्ति होती है।