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नवरात्री पूरे देश के लिए आनंद मनाने का समय होता है और यह भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। माँ दुर्गा के आह्वान् करने का यह समय होता है। नौ दिनों का यह उत्सव दशहरा या विजयादशमी के साथ खत्म होता है और इसको बहुत पवित्र और मंगलदायी माना जाता है, इसलिए लोग बहुत ही श्रद्धास्वरूप इसको मनाते है। यह आश्विन महीने के अमवस्या के दूसरे दिन से नवें दिन तक चलता है। यह अंग्रेजी महीनें के सितम्बर/ अक्तुबर महीनें में पड़ता है।

इस पूरे नौ दिनों तक भक्तगण मंत्रों का उच्चारण करते हैं, गाना या भजन गाते हैं ताकि देवी उनके भक्ति से प्रसन्न हो। नवरात्री के समय उपवास रखना पवित्र माना जाता है। इस त्योहार को मनाने के समय, इन नौ दिनों तक बहुत सारी पूजा की जाती है। यह त्योहार भी अन्य हिन्दु त्योहारों की तरह बुराई के ऊपर अच्छाई के विजय का प्रतीक है। दंतकथाओं के अनुसार नवरात्री देवी दुर्गा को समर्पित किया जाता है, जो नारी शक्ति के दो रूपों का प्रतीक है-एक नरम और रक्षकस्वरूपा और दूसरा प्रचंड और विनाशकारी रूप। इस त्योहार के दौरान तीन दिन एक-एक देवी की पूजा की जाती है, वह है देवी दुर्गा, देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती।

इन नौ दिनों तक अलग- अलग प्रांत में देवी दुर्गा अलग- अलग रूप की पूजा की जाती है:

दुर्गा- देवी जो हमारे पहुँच से बाहर है
भद्रकाली - समय की मंगलदायी शक्ति
अम्बा या जगदम्बा- विश्वमयीमाँ
अन्नपूर्णा- पर्याप्त मात्रा की दानी
सर्वमंगला- सौभग्यशालिनी देवी
भैरवी- भयानक, मृत्युदायिनी
चंद्रिका या चंडी- रूद्ररुपधारिणी
ललिता- आनंदमयी
भवानी- अस्तित्व प्रदान करने वाली

दशहरा के दिन लोग गाड़ी और अस्त्र-शस्त्र की पूजा करते हैं। वे शारदा-पूजन का विमोचन करते हैं। दशहरा खुद के ऊपर विजय प्राप्त करने का प्रतीक माना जाता है। इस समय कोई भी काम शुरू किया जा सकता है, क्योंकि यह समय मंगलदायी माना जाता है, पंचाङ्ग देखने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। विद्दार्थीगण, विद्दा की देवी सरस्वती की पूजा करते हैं।

यह उत्सव अपनी कई वर्णिमा में विद्दमान रहता है

भारत के हर राज्य की अपनी-अपनी संस्कृति है, यह त्योहार पूरे भारत वर्ष में अपने-अपने मनोभाव की तरह अलग-अलग तरह से मनाया जाता है।

#फसल काटने का त्योहार
अपने अच्छे फसल के लिए धन्यवादस्वरूप वे इस त्योहार को मनाते है। नवरात्री के पहले दिन, अनाज का दाना घर में मिट्टी में बोया जाता है और रोज पानी डाला जाता है। दंसवे दिन जब अंकुर निकलता है तब देवी को यह अर्पित किया जाता है, जो देवी का आर्शिवाद माना जाता है। यह अच्छे फसल का प्रतीक माना जाता है।

#गुजरात का दांडियारास
मुख्यतः महाराष्ट्र और गुजरात में नवरात्री का सबसे मनोरंजन वाला अंग है दांडिया और गरबा , जो शाम को किया जाता है। यह देवी के सम्मान में किया जाता है। शाम के वक्त लोग एक जगह एकत्र होकर दिल से इस नृत्य को करते हैं। मुम्बई और गुजरात में कई गोष्ठियाँ या दल इसका आयोजन करते है। यह पूरे देश भर में, यहाँ तक भारतीय सम्प्रदायों में यह लोकप्रिय हो गया है जिसमें यू.एक. और यू.एस.ए. भी शामिल है।

पूरे नौ दिनों तक अम्बा, शक्ति की देवी की पूजा की जाती है, लोग उपवास रखकर देवी को श्रद्धाज्ञापन करते हैं। परम्परागतस्वरूप, दांडियारास आरती के बाद शुरू होता है (देवी की पूजा की जाती है)। पुरूष और महिलायें अपने परम्परागत वेश में अच्छे लगते है। दांडियारास रंगीन छड़ी से खेला जाता है, जो बाँस का बना होता है। नृत्य करने वाले अपने-अपने सहयोगियों के छड़ी से छड़ी से टकराते है और घेरा में गोल-गोल घूम घूम कर गाने के लय पर नृत्य करते हैं।

#पश्चिम बंगाल में त्योहार का आनंद
पश्चिम बंगाल में नवरात्री में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा की पूजा महाषष्ठी से शुरू होती है। देवी का आगमन एक विशेष प्रकार के ड्रम, जिसे ढाक कहते है उसे बजा कर की जाती है। दुर्गापूजा का अभिन्न अंग यह ढाक होता है। इस दिन देवी के मूर्ति का अनावरण किया जाता है। पूजा शुरू होने के पहले कल्पारंभ होता है, उसके बाद बोधन, आमंत्रण और अधिवास होता है। प्राचीन काल से ही नौ तरह के पौधें की पूजा की जाती है। देवी के प्रतीक के रूप में एक साथ इन सबकी पूजा की जाती है।

सप्तमी दुर्गापूजा का पहला दिन होता है। सुबह हजारों लोग पूजा पंडाल में पुष्पाजंली देने के लिए एकत्र होते है। आंठवे दिन(महाअष्टमी) संधिपूजा होता है, जो महाअष्टमी और महानवमी का संधिकाल होता है। इस समय विशेष प्रकार का भोजन दिया जाता है जिसमें, खिचड़ी, मैदे का पूरी, मिक्सड वेजिटेबल का व्यंजन, फ्राई किया हुआ बैंगन, और पायेश दिया जाता है।

संधिपूजा के बाद मूल नवमी पूजा आरंभ होता है। नवमी का भोग भगवान को दिया जाता है। जो बाद में भक्तगण में बाँटा जाता है। दंसवे दिन (दशमी) आंसू के साथ देवी को विदा किया जाता है। सफेद और लाल किनारा वाला साड़ी विवाहित महिलायें पहनकर माँ दुर्गा को सिंदूर पहनाती है, संदेश खिलाती है। प्रतिमा को स्थानीय जगहों में जुलूस में घुमाकर नदी में विसर्जित किया जाता है। विजयादशमी पूरे देश भर में मनाया जाता है।

#रामलीला की परम्परा
दंतकथा के अनुसार, भगवान राम ने देवी दुर्गा की पूजा नौ दिनों तक की थी और दंसवे दिन रावण को मारा था, जो विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। उत्तरी भारत में रामलीला, नौ दिनों तक मनाया जाता है, इन नौ दिनों तक पूरे रामायण को अभिनेताओं द्वारा उस तरह का वेशभूषा पहनकर नाटकीय रूप में चरितार्थ किया जाता है। दशमी के दिन उत्सव का आखिरी दिन होता है। भगवान राम के हाथों राक्षसराज रावण का वध होता है, इसके प्रतीकस्वरूप ड्रम बजाकर पटाखों से बने पुतलाओं को जलाया जाता है।

#दक्षिण भारत में यह त्योहार
दक्षिण भारत के निचले क्षेत्र, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक में वे देवी की मूर्ति बनाते हैं, देवी को वे बोमाई कालु के नाम से पुकारते हैं।  नौ या सात स्तरों तक सजाते हैं। किसी भी चीज़ से मूर्ति बना सकते है मगर लकड़ी का बना मूर्ति ज़्यादा पवित्र और मांगलिक (मारबाची) माना जाता है। नवें दिन विवाहित महिलायें और कुँवारी महिलायें कुमकुम-हल्दी के लिए बुलाती है। हर दिन अलग अनाज का अंकुर जिसे नैवेद्द कहा जाता है, भगवान को दिया जाता है, फिर औरतों में बाँटा जाता है। हर दिन अलग-अलग दाल से मिठाई बनाकर भगवान को दी जाती है। नवें दिन महानवमी को पुस्तक को रेशम के कपड़े में बाँध करके भगवान के सामने रखा जाता है, देवी सरस्वती की पूजा करने के लिए। दशहरा के दिन उस पुस्तक में एक पन्ना लिखकर या पढ़कर देवी सरस्वती को श्रद्धाज्ञापन दिया जाता है। मिठाई देवी सरस्वती को प्रदान किया जाता है, उसमें दूध का बना विभिन्न तरह पुडिंग होता है जिसे पायसम कहते हैं।

#मैसूर में दशहरा का समारोह
मैसूर के लोग महिषासुर के ऊपर देवी दुर्गा के विजय के प्रतीक के रूप में इस पूजा को मनाते है, चामूंडा के पर्वत पर देवी चामूंडा देवी, देवी दुर्गा का ही एक रूप है। मैसूर के राजपरिवार की देवी चामूंडा देवी ही है, बहुत बड़ा जूलूस निकाला जाता है, सज्जित हाथी, राजपरिवार का प्रतीक के साथ शहर भर में जूलूस घुमता है और पर्वत में जाकर जुलूस खत्म होता है और देवी को पूजा ज्ञापन किया जाता है।

#कुलू में दशहरा
हिमाचल प्रदेश का शांत शहर कुलू पूरे देश भर में दशहरा खत्म हो जाने के बाद तीन दिन तक दशहरा मनाता है। महाराजा रंजीत सिंह के राज्य में अन्य राज्य के राजा अपने राज्य का पूजा खत्म कर तीन के बाद पहुँचते है इसलिए सबके बाद इस शहर में तीन दिन तक दशहरा मनाया जाता है।

#रंग की संस्कृति
नवरात्री के नौ दिनों तक विभिन्न रंग का कपड़ा पहनने का रिवाज़ है। नव अवतार नौ रंगों का प्रतीक है, देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रकटीकरण है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा यह नौ रंग पहनेंगी। हर रंग का अपना एक महत्व है। परम्परागत रूप से हर साल रंग बदलता रहता है। लाल रंग सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देवी को द्दौतित करता है। विभिन्न योग के ऊर्जा के चक्र के रूप में हर एक अपना महत्व है।

महाभोज और उपवास का समय

नवरात्री उपवास का समय होता है। कुछ लोग नव दिनों तक उपवास रहते हैं मगर कुछ लोग सांतवें और आठंवें दिन ही उपवास करते हैं। नवें दिन देवी को दिए भोग को खाकर उपवास तोड़ते हैं।

#देवी को दिया गया भोग
नवरात्री के दौरान देवी को विभिन्न तरह का भोग दिया जाता है, हर दिन अलग-अलग तरह का भोग होता है।
 

  • पहले दिन उपवास शुरू होता है, माँ शिलापुत्री के चरण में घी दिया जाता है। भक्त को व्याधि रहित जीवन का आर्शिवाद प्राप्त होता है।
  • दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी को चीनी भोगस्वरूप दिया जाता है। परिवारजन के लंबेउम्र के लिए यह भोग दिया जाता है।
  • तीसरे दिन, दूध, दूध से बनी मिठाई, खीर भोगस्वरूप माँ चंद्रघंटा को दिया जाता है। हर दुख से मुक्ति प्राप्त करने के लिए और जीवन में आनंद का आगमन करने के लिए यह भोग दिया जाता है।
  • चौथे दिन नवरात्री को माँ कुशमंडा की पूजा की जाती है। देवी को भोग में मालपुआ दिया जाता है ताकि देवी भक्तगण को खुश होकर बुद्धि और ज्ञान प्रदान करें।
  • माता स्कंधमाता नवरात्री के पांचवे दिन पूजी जाती है। शारीरिक स्वास्थ्य के लाभ के लिए देवी को केला भोगस्वरूप दिया जाता है।
  • छठे दिन, माँ कात्यायनी को भोगस्वरूप शहद दिया जाता है। जिससे भक्त ज़्यादा आकर्षक लगे।
  • सांतवे दिन, पूरे दिन उपवास के बाद माता कालरात्री को गुड़ भोग में दिया जाता है। इससे देवी भक्त के हर दर्द को हर लेंगी।
  • दुर्गा अष्टमी के दिन, माता महागौरी की पूजा की जाती है। भोग में इस दिन नारियल दिया जाता है।
  • नवें दिन देवी सिद्धीदात्री को तिल भोग में दिया जाता है। यह माना जाता है देवी भक्त के मृत्यु भय को दूर करती है। र्दुघटना से देवी बचाती है।


#उपवास के दौरान भोज

उपवास के दौरान लोग बहुत सारी चीज़ें बनाते हैं, लेकिन पूजा के नियम के अनुसार यह पहले से तय रहता है कि किस तरह का विशुद्ध खाना बनाना है और क्या नहीं। खाना बिल्कुल शाकाहारी होना चाहिए, फल, दूध, आलू और दूसरे जड़ वाले सब्जी होने चाहिए। विशेष प्रकार के सामग्रियों का इस्तेमाल नवरात्री के व्यंजन बनाने में होता है। मसालों का इस्तेमाल कम होता है, लाल मिर्च, हल्दी और जीरा का इस्तेमाल कम होता है और नमक के जगह पर सेंधा नमक का इस्तेमाल होता है। प्याज़ और लहसुन का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता है। दूध, दही, फल और नट खा सकते हैं।

जो लोग इन दिनों उपवास करते हैं, वे विशेष प्रकार का खाना खा सकते हैं जैसे- साबुदाना वड़ा, अरबी की कढ़ी, केले की सब्ज़ी, राजगिरे की पूरी, नारियल का लड्डू, अरबी फ्राइड, कच्चे केले की चाट, और फल।

यहाँ कुछ स्वादिष्ट रेसपियाँ दी जा रही जो नवरात्री दे दौरान बनाई जाती है

# परम्परागत नवरात्री के व्यंजन
उपवास के दौरान बहुत तरह की मिठाईयाँ और दूसरे व्यंजन भी खाने के लिए होते हैं। उपवास के बाद भोज भारत के हर त्योहार को और भी विशेष बना देता है।

पंजाब जैसे राज्य में इन नौ दिनों में जो खाना बनता है उनमें पनीर की करी, कुट्टु के आटे की पूरी, दूध और विशेष प्रकार के चावल का पुडिंग, आलू की टिक्की और लऊकी का हलवा होता है।

बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान स्वादिष्ट व्यंजन बनते है जैसे - आलूर दम, लूची, रसगुल्ला, छोलार दाल और मिष्टी दोई आदि। दशहरा के दिन विशेषकर गुजरात में, जलेबी और फाफड़ा चटनी के साथ बनता है, जो भगवान को प्रसादस्वरूप दिया जाता है और बाद में भक्तगण भी प्राप्त करते है।

सभी को नवरात्री की शुभकामना!

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MasterChef Sanjeev Kapoor

Chef Sanjeev Kapoor is the most celebrated face of Indian cuisine. He is Chef extraordinaire, runs a successful TV Channel FoodFood, hosted Khana Khazana cookery show on television for more than 17 years, author of 150+ best selling cookbooks, restaurateur and winner of several culinary awards. He is living his dream of making Indian cuisine the number one in the world and empowering women through power of cooking to become self sufficient. His recipe portal www.sanjeevkapoor.com is a complete cookery manual with a compendium of more than 10,000 tried & tested recipes, videos, articles, tips & trivia and a wealth of information on the art and craft of cooking in both English and Hindi.