भारत के हर राज्य की अपनी-अपनी संस्कृति है, यह त्योहार पूरे भारत वर्ष में अपने-अपने मनोभाव की तरह अलग-अलग तरह से मनाया जाता है।
#फसल काटने का त्योहार
अपने अच्छे फसल के लिए धन्यवादस्वरूप वे इस त्योहार को मनाते है। नवरात्री के पहले दिन, अनाज का दाना घर में मिट्टी में बोया जाता है और रोज पानी डाला जाता है। दंसवे दिन जब अंकुर निकलता है तब देवी को यह अर्पित किया जाता है, जो देवी का आर्शिवाद माना जाता है। यह अच्छे फसल का प्रतीक माना जाता है।
#गुजरात का दांडियारास
मुख्यतः महाराष्ट्र और गुजरात में नवरात्री का सबसे मनोरंजन वाला अंग है दांडिया और गरबा , जो शाम को किया जाता है। यह देवी के सम्मान में किया जाता है। शाम के वक्त लोग एक जगह एकत्र होकर दिल से इस नृत्य को करते हैं। मुम्बई और गुजरात में कई गोष्ठियाँ या दल इसका आयोजन करते है। यह पूरे देश भर में, यहाँ तक भारतीय सम्प्रदायों में यह लोकप्रिय हो गया है जिसमें यू.एक. और यू.एस.ए. भी शामिल है।
पूरे नौ दिनों तक अम्बा, शक्ति की देवी की पूजा की जाती है, लोग उपवास रखकर देवी को श्रद्धाज्ञापन करते हैं। परम्परागतस्वरूप, दांडियारास आरती के बाद शुरू होता है (देवी की पूजा की जाती है)। पुरूष और महिलायें अपने परम्परागत वेश में अच्छे लगते है। दांडियारास रंगीन छड़ी से खेला जाता है, जो बाँस का बना होता है। नृत्य करने वाले अपने-अपने सहयोगियों के छड़ी से छड़ी से टकराते है और घेरा में गोल-गोल घूम घूम कर गाने के लय पर नृत्य करते हैं।
#पश्चिम बंगाल में त्योहार का आनंद
पश्चिम बंगाल में नवरात्री में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा की पूजा महाषष्ठी से शुरू होती है। देवी का आगमन एक विशेष प्रकार के ड्रम, जिसे ढाक कहते है उसे बजा कर की जाती है। दुर्गापूजा का अभिन्न अंग यह ढाक होता है। इस दिन देवी के मूर्ति का अनावरण किया जाता है। पूजा शुरू होने के पहले कल्पारंभ होता है, उसके बाद बोधन, आमंत्रण और अधिवास होता है। प्राचीन काल से ही नौ तरह के पौधें की पूजा की जाती है। देवी के प्रतीक के रूप में एक साथ इन सबकी पूजा की जाती है।
सप्तमी दुर्गापूजा का पहला दिन होता है। सुबह हजारों लोग पूजा पंडाल में पुष्पाजंली देने के लिए एकत्र होते है। आंठवे दिन(महाअष्टमी) संधिपूजा होता है, जो महाअष्टमी और महानवमी का संधिकाल होता है। इस समय विशेष प्रकार का भोजन दिया जाता है जिसमें, खिचड़ी, मैदे का पूरी, मिक्सड वेजिटेबल का व्यंजन, फ्राई किया हुआ बैंगन, और पायेश दिया जाता है।
संधिपूजा के बाद मूल नवमी पूजा आरंभ होता है। नवमी का भोग भगवान को दिया जाता है। जो बाद में भक्तगण में बाँटा जाता है। दंसवे दिन (दशमी) आंसू के साथ देवी को विदा किया जाता है। सफेद और लाल किनारा वाला साड़ी विवाहित महिलायें पहनकर माँ दुर्गा को सिंदूर पहनाती है, संदेश खिलाती है। प्रतिमा को स्थानीय जगहों में जुलूस में घुमाकर नदी में विसर्जित किया जाता है। विजयादशमी पूरे देश भर में मनाया जाता है।
#रामलीला की परम्परा
दंतकथा के अनुसार, भगवान राम ने देवी दुर्गा की पूजा नौ दिनों तक की थी और दंसवे दिन रावण को मारा था, जो विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। उत्तरी भारत में रामलीला, नौ दिनों तक मनाया जाता है, इन नौ दिनों तक पूरे रामायण को अभिनेताओं द्वारा उस तरह का वेशभूषा पहनकर नाटकीय रूप में चरितार्थ किया जाता है। दशमी के दिन उत्सव का आखिरी दिन होता है। भगवान राम के हाथों राक्षसराज रावण का वध होता है, इसके प्रतीकस्वरूप ड्रम बजाकर पटाखों से बने पुतलाओं को जलाया जाता है।
#दक्षिण भारत में यह त्योहार
दक्षिण भारत के निचले क्षेत्र, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक में वे देवी की मूर्ति बनाते हैं, देवी को वे बोमाई कालु के नाम से पुकारते हैं। नौ या सात स्तरों तक सजाते हैं। किसी भी चीज़ से मूर्ति बना सकते है मगर लकड़ी का बना मूर्ति ज़्यादा पवित्र और मांगलिक (मारबाची) माना जाता है। नवें दिन विवाहित महिलायें और कुँवारी महिलायें कुमकुम-हल्दी के लिए बुलाती है। हर दिन अलग अनाज का अंकुर जिसे नैवेद्द कहा जाता है, भगवान को दिया जाता है, फिर औरतों में बाँटा जाता है। हर दिन अलग-अलग दाल से मिठाई बनाकर भगवान को दी जाती है। नवें दिन महानवमी को पुस्तक को रेशम के कपड़े में बाँध करके भगवान के सामने रखा जाता है, देवी सरस्वती की पूजा करने के लिए। दशहरा के दिन उस पुस्तक में एक पन्ना लिखकर या पढ़कर देवी सरस्वती को श्रद्धाज्ञापन दिया जाता है। मिठाई देवी सरस्वती को प्रदान किया जाता है, उसमें दूध का बना विभिन्न तरह पुडिंग होता है जिसे पायसम कहते हैं।
#मैसूर में दशहरा का समारोह
मैसूर के लोग महिषासुर के ऊपर देवी दुर्गा के विजय के प्रतीक के रूप में इस पूजा को मनाते है, चामूंडा के पर्वत पर देवी चामूंडा देवी, देवी दुर्गा का ही एक रूप है। मैसूर के राजपरिवार की देवी चामूंडा देवी ही है, बहुत बड़ा जूलूस निकाला जाता है, सज्जित हाथी, राजपरिवार का प्रतीक के साथ शहर भर में जूलूस घुमता है और पर्वत में जाकर जुलूस खत्म होता है और देवी को पूजा ज्ञापन किया जाता है।
#कुलू में दशहरा
हिमाचल प्रदेश का शांत शहर कुलू पूरे देश भर में दशहरा खत्म हो जाने के बाद तीन दिन तक दशहरा मनाता है। महाराजा रंजीत सिंह के राज्य में अन्य राज्य के राजा अपने राज्य का पूजा खत्म कर तीन के बाद पहुँचते है इसलिए सबके बाद इस शहर में तीन दिन तक दशहरा मनाया जाता है।
#रंग की संस्कृति
नवरात्री के नौ दिनों तक विभिन्न रंग का कपड़ा पहनने का रिवाज़ है। नव अवतार नौ रंगों का प्रतीक है, देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रकटीकरण है। नौ दिनों तक देवी दुर्गा यह नौ रंग पहनेंगी। हर रंग का अपना एक महत्व है। परम्परागत रूप से हर साल रंग बदलता रहता है। लाल रंग सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देवी को द्दौतित करता है। विभिन्न योग के ऊर्जा के चक्र के रूप में हर एक अपना महत्व है।