मकरसंक्राति और लोहरी
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अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवादस्वरूप प्रार्थनाज्ञापन के लिए मकरसंक्राति का उत्सव :
हिन्दु खगोलविद्दा के अनुसार मकर संक्राति वह दिन है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह दिन अंग्रेज़ि महीने के जनवरी को आता है। दूसरे हिन्दु त्योहार हर साल अलग-अलग दिनों को आते हैं मगर यह दिन ठीक 14 जनवरी को ही मनाया जाता है, जब सूर्य शीत अयनांत से (मध्याह्न बेला में सूर्य का उच्चतम या निम्नतम बिन्दु पर पहुँचने का समय) होते हुए उत्तर में कर्क रेखा और दक्षिण में मकर रेखा से गुज़रता है। मकर संक्रांति को बहुत पवित्र माना जाता है और नए के शुरुआत का द्दोतक होता है। इसे उत्तरायण भी कहा जाता है। इस दिन से दिन का समय बढ़ता है और रात का समय कम होता है। यही वह अवधि है जब शीत कम होने लगती है, गर्मी आने के पथ पर होती है।
समुद्री तटों के प्रांतों में अच्छी फसल होने के लिए इंद्र की उपासना की जाती है। महाभारत के युद्ध के समय इसी दिन भीष्म अर्जुन के तीरों से शरबद्ध होकर शरशय्या पर सोए थे, शरीर को त्यागने का इंतज़ार कर रहे थे। प्रथा के अनुसार, इस दिन जो मृत्यु को प्राप्त करता है वह सीधे प्रकाश के दुनिया में प्रवेश करता है और अलौकिक आर्शिवाद प्राप्त करता है।
उत्तर में लोहरी आनंद को लेकर आता है
उत्तर भारत में जब शीत ऋतु अपने चरमअवस्था पर होती है तब से लोग लोहरी के लिए तैयारी करने में जुट जाते हैं। रवि फसल के कटने के खुशी में बॉनफायर का आयोजन किया जाता है। इस त्योहार को नाच-गाकर मनाया जाता है। सुबह बच्चे हर घर गाना गाते हुए जाते हैं और लोहरी के सामान के लिए रूपया और खोनेयोग्य गजक, बादाम, गुड़, रेवड़ी आदि माँगते हैं।
दुल्हा भट्टी का यशोगान करते हैं जो रॉबिन हुड की तरह पंजाबियों का अवतार था। वह अमीरों को लूटकर गरीबों की मदद करता था। एक दंतकथा है कि उसने एक लाचार गरीब लड़की की शादी अपनी बहन की तरह की थी। शाम को सूर्यास्त होते ही घर के आंगन के सामने खेत में बॉनफायर जलाया जाता है और लोग एकत्र होकर लौ के चारों तरफ घूमते हैं और आग में मामरा, पॉपकॉर्न और खाने की चीज़ें अर्पण करते हैं और चिल्लाते हैं “आदर आए दलिदर जाए” और प्रसिद्ध लोकगीत गाते हैं। एक तरह से यह अग्निदेवता की पूजा है जिससे की भूमि को समृद्धि का आशिर्वाद मिले। परिक्रमा करने के बाद लोग दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते हैं और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं, प्रसाद बाँटते हैं जिसमें पाँच तरह की चीज़ें होती हैं: तिल, गज़क, गुड़, बादाम और पॉपकॉर्न। बॉनफायर के चारों तरफ जाड़े के व्यंजन परोसे जाते हैं जिसमें परम्परागत रात के खाने में मक्की-दी-रोटी और सरसों-दा-साग रहता है। कुछ लोग गोभी का पकौड़ा, खजूर, दही भल्ले और अंत में कुरमुरे और फुलियाँ के लड्डु खाते हैं। पुरूष भांगरा करते हैं और औरतें अलग से गिद्दा नृत्य का आनंद उठाती है। नए दुल्हन और नवजात शिशु के लिए पहली लोहरी उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है।
प्रयाग में महा कुम्भ का मेला
महा कुम्भ मेला धरती का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है जो बारह वर्ष के बाद होता है, भारत के चार जगहों में होता है - नासिक, उज्जैन, हरिद्वार और इलाहाबाद। प्रयाग में भी ऐसा ही एक मेला होता है, जो गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम स्थल है, यह इलाहाबाद का ही एक शहर है़, जहाँ हज़ारों तीर्थयात्री जाते हैं। यह मेला मकर संक्राति के दिन से शुरू होता है। कुम्भ मेला में करोड़ों धार्मिक जाते हैं - हर जाति, संप्रदाय, विभिन्न भाषाओं वाले, विभिन्न राज्यों से संत और कोमोनर आते हैं।
असम में इस दिन भोगाली बिहु का उत्सव होता है
असम में यह दिन भोगाली बिहु के रूप में मनाया जाता है जो शीत में धान के फसल के खत्म होने का द्दोतक होता है। त्योहार के पिछले रात को लोग उपवास करते हैं, प्रार्थना करते हैं और कस्बों से दूर खेत के चारों तरफ घर छाने की घास (फूस) रखते हैं। त्योहार के शुरु होने के चिह्न स्वरूप प्रात:काल उस घास में आग लगा दी जाती है। साँढ़ की लड़ाई और अन्य समारोह उस दिन को विशेष रूप से आयोजित किया जाता है।
बंगाल में समारोह
मकर संक्रांति के उत्सव के समय गंगा और समुद्र के संगम स्थल में बड़ी मात्रा में पूरे बंगाल के लोग परम्परागत स्नान के लिए एकत्र होते हैं। करशियांग 2458 मीटर (4864 फीट) ऐल्टिट्यूड् पर शिलीगुड़ी से, 51 किलोमीटर और दार्जिलिंग से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इस जगह पर यह समय कड़ाके की सर्दी का समय होता है। लोग मंदिरों में पूजा करते हैं और नदी में पवित्र डूबकी लगाते हैं।
राजस्थान और गुजरात में पतंग उड़ाते हैं
मकर संक्रांति के अवसर पर पूरे भारत में पंतग उड़ाया जाता है। राजस्थान में विशेषकर जयपुर में आसमान पतंग से भर जाता है। जोधपुर में, रेगिस्तान पतंग उत्सव मकर संक्रांति के अवसर पर मनाया जाता है। मकर संक्रांति के उत्सव में गुजरात की अपनी विशेष अहमियत है, काइट फ्लाइंग डे के रुप में। साफ नीला आकाश सभी को पंतग उड़ाने के लिए और आनंद उठाने के लिए आमंत्रित करता है।
महाराष्ट्र में यह दिन तिल गुड़ के रूप में मनाया जाता है
महाराष्ट्र में लोग तिल गुड़ (तिल और गुड़) बाँटकर अपनी खुशी ज़ाहिर करते हैं। तिल सुगंध और स्वादिष्ट तेल से भरा होता है और मित्रता और भाईचारे का द्दोतक है और गुड़ बोली में मिठास और अच्छे व्यवहार का द्दोतक है। तिल गुड़ देते समय यह कहा जाता है ‘तिल गुड़ घया अनि गोड़ गोड़ बोला’ (तिल गुड़ खाओ और मीठा बोलो) भाईचारा और सामंजस्य का द्दोतक है। महाराष्ट्र में इसकी दूसरी विशेषता है: गुरु अपना आर्शिवाद सुमन इसी मौसम में प्रदान देते हैं।
आंध्र में उत्सव
आंध्र प्रदेश में इस उत्सव की तैयारी एक महीने पहले से ही शुरु हो जाती है। भोगी, संक्रांति के पहले दिन, कानुमू संक्रांति के दूसरे दिन। भोगी के दिन, प्रात:काल पारम्परिक स्नान के बाद बॉनफायर जलाया जाता है। पोंगाली (चावल दूध के साथ, मीठा व्यंजन) इस अवसर का महत्वपूर्ण व्यंजन है। विशेष व्यंजन, अरीसेलू (मीठा चावल का केक) बनाया जाता है। कानुमू के दिन जानवरों को सजाकर रेस का आयोजन किया जाता है, मुर्गों की लड़ाई, साँढ़ की लड़ाई और भेड़ों की लड़ाई इसमें शामिल है। सूर्य, महाबली (द्राविडियन राजा) और गोडा देवी की पूजा फसल के समय की जाती है।
तमिलनाडू में इस समय पोंगल मनाया जाता है
तमिलनाडू के पोंगल का उत्सव दक्षिणपूर्वी मॉनसून के जाने और फसल के पकने का द्दोतक होता है। पोंगल ग्रामीण क्षेत्र का उत्सव है। सूर्य की पूजा की जाती है, क्योंकि यह धरती पर अपनी किरणों से जीवन प्रदान करता है। यह बहुत बड़ा कृषि प्रधान उत्सव चार दिनों तक चलता है। उत्सव का नाम पोंगल के मीठे व्यंजन से आया है, जो ताज़े काटे फसल से निकले चावल, दूध और गुड़ से बनते हैं। पहला दिन भोगी पोंगल परिवार के लिए होता है। सूर्या पोंगल, दूसरा दिन, भगवान सूर्य को समर्पित है। तीसरा दिन, माटूपोंगल मवेशियों की पूजा की जाती है। चेन्नई (मद्रास) में खंडस्वामी मंदिर से रथ-यात्रा निकलती है। मदुराई, तेनजोर और त्रिचुरापल्ली, में पोंगल जेलीकट्टु के नाम से जाना जाता है। साँढ़ के सींग में रुपयों का बंडल बाँध दिया जाता है और ग्रामवासी उसको लेने की कोशिश करते हैं। पूरे ग्रामवासी नए काटे फसल से खाना बनाकर आनंदपूर्वक एक साथ खाते हैं।
कर्नाटक और केरल में एक अद्भुत स्पर्श
कर्नाटक में पूजा के बाद, सफेद तिल (इलू) को गुड़, बादाम, सूखा नारियल और चीनी का ब्लॉक (शक्करे अछेछू) में मिलाकर आदान-प्रदान किया जाता है। गविपूरम, बैंगलोर के गवि गंधेश्वरा (शिव) मंदिर, में एक अद्भुत घटना शाम को घटती है। सूर्य की किरणें नन्दी के सिंग से गुजरती हुई लिंगम् पड़ पड़ती है। यह एक आरकिटेक्चरल मार्बेल है।
केरला में मकर संक्रांति के शाम को शबरीमाला के पर्वत पर लाखों तीर्थयात्री इस बात का गवाह है कि एक अलौकिक प्रकाश आकाश में प्रकट होती है, जिसे मकरज्योति कहा जाता है। यह घटना शाम को दीपपराधमा के समय होता है। तीर्थयात्रियों का मानना है कि इस मुहुर्त में सबकी मनोकामना पूर्ण होती है। भगवान अयप्पा एक विशेष प्रकार का आभुषण पहने रहते हैं जो थीरुभारानम कहलाता है। कहा जाता है आभूषण पंडालाम महाराज ने प्रभु को दान दी थी, उन्हें भगवान का फॉस्टर फादर माना जाता है।
संक्रांति के विशेष अवसर पर व्यंजन बनाया जाता है
कोई भी उत्सव भारत में स्वादिष्ट व्यंजन के बिना नहीं मनाया जा सकता, इसमें मकर संक्राति भी आता है। हर राज्य का अपना अलग व्यंजन है, लेकिन तिल का सुगंधित व्यंजन पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध है - इस सुगंधित बीज से बहुत सारी मिठाईयाँ बनाई जाती है।
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