नारी शक्ति
1975 में यू.एन.ने विश्वव्यापी स्तर पर नारी के प्रति ध्यान दिया और अंतरराष्ट्रीय नारी वर्ष मनाने की बात कही गई। मेक्सिको सिटि में महिलाओं के लिए सम्मेलन की व्यवस्था की गई। इस कुछ शताब्दियों से विकसित देश नारी शक्ति को उन्नत बनाने के बारे में सोचने लगी है। अब नारी भी संविधान को नियमानुसार अधिकार का लाभ उठा सकती हैं, उनके साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। कानूनी साक्षरता और दूसरे आयाम से औरतों को अवगत कराकर उन्हें उनके अधिकार के प्रति सचेत किया जाएगा। विश्व समुदाय नारी के प्रति दुराचार को मानव अधिकार का उल्लंघन मानती है। यूनाइटेड नेशनल और दूसरे सदस्य राज्यों द्वारा लिंग संबंधित नियमित प्रोग्राम और पॉलिसी पर महत्व दिया जाएगा।
इतना करने के बावजुद नारी अधिकार उतना कामगार साबित नहीं हो रहा है और भी बहुत कुछ करना ज़रूरी है। 8 मार्च के द्वारा नारी के सफलताओं को सम्मान दिया गया है और राष्ट्रीय, प्राँतीय और विश्वव्यापी स्तर पर नारी के ज़रूरतों पर ध्यान दिया जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय दिवस को अफगानिस्तान, अरमानिया, अजेरबाइजान, वेलारूस में इस दिन सरकारी तौर पर छुट्टी की घोषणा की जाती है। कमबोडिया, चीन सिर्फ औरतों के लिए, क्युबा, जॉरजिया, गुयेना बीसा, एसीट्री, एरीट्रिया, कज़ाकस्तान, क्रिजस्तान, लाओस, मदागास्कर, मारडावा, मंगोलियन, मॉनटिगो, नेपाल, रूस, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, युगान्डा, युक्रे, उजबेकिस्तान, वियतनाम और जांम्बिया में इस दिन सरकारी छुट्टी की घोषना की जाती है। पुरूष इस दिन अपनी माँ, पत्नी, गर्लफ्रेंड, सहकर्मी आदि को फूल और उपहार देते हैं। कुछ देशों में इस दिन मदर्स डे की तरह सम्मान दिया जाता है, बच्चे अपने माँ और दादी/नानी को उपहार देते हैं।
नारी के प्रति समाज के व्यवहार को बदलना ज़रूरी है, उन्हें भी समानता चाहिए और दासत्व से मुक्ति चाहिए। जवान प्रजन्म का मानना है कि उन्होंने सारी लड़ाई जीत ली है, मगर फेमिनिस्ट जो पहले के प्रजन्म के है वे जानते हैं काम उतना आसान नहीं है। वे पितृतंत्र के अंतर्निहित जटिलता से वाकिफ़ है, सालों से चले आ रहे पुरूष प्रधान समान को हिलाना उतना आसान करा रही है, कानूनी अधिकार में वह समान है और जीवन हर क्षेत्र में नारी की भूमिका बढ़ रही है। वे सामान्य के पथ पर अग्रसर होकर लड़ाई लड़ रही है, मगर अब भी थोड़ा पथ और बढ़ना बाकी है। अब भी पुरूषों के तुलना में नारी को कम तनख्वाह दी जाती है मगर वे सिद्ध कर चुकी है कि पुरूषों के तुलना में ज़्यादा ईमानदार और कुशल है। वाणिज्य और राजनीति के क्षेत्र में पुरूषों के समान ही वह काम कर रही है। लेकिन अब भी समाज में नारी के प्रति हिंसा हो रही है और सबसे दुख की बात शिक्षित और शहरी समाज में हो रहा है जहाँ जीवन के प्रति लोगों का मनोभाव वृहद है।