हिंग: हिंग में राल, गोंद, गंध तेल और राख होता है। मिनरल और विटामिनों में कॅलशियम, फॉसफोरस, आयरन, कॅरोटिन, राय्बोफलॅविन और नायसिन की मात्रा काफी है। इसका इस्तेमाल शाकाहारी पकवानों में काफि होता भले थोडे मात्रा में। कभि कभी ताज़े या नमकवाले मछली के पकवानों में भी डलता है। चटनी, आचार और सॉस में भी डलता भले हि बहुत ही थोडा। काफि सारे शारीरिक विकार को ठीक करने में हिंग बहुत लाभदायक होता है।
तेज़ पत्ते: प्राचीन रोम में तेज़ पत्ते का होना गौरव की बात होती थी और अब ये पत्ते लगभग सभी पुलाव और बिर्यानियों की शान बढाते हैं। इन पत्तों में जो तेल होता है वो गरम करने पर ही एक असाधारण स्वाद देता है पकवानों में। ईसके स्वाद और सुंगध का कारण है इन पत्तों में जो आवशयक तेल युजिनॉल है।
बड़ी इलायची: बड़ी इलायची के बीजो में एक गंध तेल होता है जिसके वजह से इसमें इतना सुगंध होता है। यह गरम मसाला पावडर में डलता है, और कई पकवानों में भी डलता है। ये बीज दिल के लिये अचछे होते है, स्फुर्तिदायक और कामोत तेजक भी समझा जाता है।
काली मिर्च: काली मिर्च दुनिया का सबसे पुराने और जाने मसालों में से एक है। इसमें काफी स्टार्च पाया जाता है। काली मिर्च का मसाले के रूप में प्रयोग होता लगभग पूरी दुनिया में। काली मिर्च को सम्मिलित करना आसान है, और तो और वह शक्तिवर्धक और मूत्रवर्धक भी है।
शाही ज़ीरा: इतिहास कहता है कि शाही ज़ीरा प्राचीन काल से जोता जाने वाले मसालों में से एक है। जब आप इन बीज़ों को अपने उँगलियों के बीच रगडें तब एक गरम, मिठि और हल्की सी तीखी सुगंध आती है। अगर आप इनके स्वाद का पूरा आनन्द लेना चाहतें हैं तो तभी पीसें जब आप इस्तेमाल करना चाहें। पश्चिमी भोजन में इन्हें ब्रेड, केक, बिस्किट और चीज़ में भी डाला जाता है। इन बीजों में आहार संबंधी फायबर होता जो कब्ज़ रोकता है। असल में तो खाना भी ज़ल्दि पचता है।
अजवैन: इन बीजों का मूल दक्षिण भारत में है और ये शाही ज़ीरा और ज़ीरा से सम्बद्धित हैं। इनकी खुशबु काफि हद तक थाय्म जैसी है। काफि सारे भारतीय पकवानो में इसका इस्तेमाल होता है। अमृतसरी मछली, कुल्चे, परांठा और नान जैसे पंजाबी खानों में इसका इस्तेमाल होता है। यह शक्तिवर्धक है और कई क्षुधावर्धक पकवानों में डाला जाता है। अजवैन का पानी शक्तिवर्धक, स्फूर्तिदायक और वातहर होता है जिस वजह से इसे पेट दर्द, दस्त, पेचिश, अपच, उदर स्फिति और अजीर्ण इत्यादि के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।
लौंग: अरसों से लौंग का तेल दांत के दर्द के इलाज करने में इस्तेमाल होता आ रहा है। यह एक स्वाभाविक दर्दनाशक और रोगाणुरोधक है। इसमें युजेनॉल है जिस वजह से इसका उपयोग दन्त-चिकित्सा में होता है। आयुर्वेदिक मालिश में भी इसका इस्तेमाल होता है। इसके अलावा यह पाचन के लिये भी अच्छा है। ऑयल पेय्न्टिंग में भी लौंग के तेल का इस्तेमाल होता है। यह तेल रंगपट्टिका पर रखे रंगो के सूख रहे तेलों (अलसी का तेल, सॅफ्लावर का तेल, खसखस का तेल, अखरोट का तेल इत्यादि) का ऑक्सीकरण रोकता है। यह गरम मसाले का – खड़ा मसाला और पावडर दोनों का - एक प्रमुख भाग है।
साबुत धनिया: धनिये के पौधे से निकले यह छोटे भूरे बीज़, ज़ीरा और इलायची भारतीय भोजन के प्रमुख अंश है। पीसा साबुत धनिया में बहुत अच्छी खुशबु होती है। पीसा धनिया करी, मट्टन, चिकन और शाकाहारि पकवानो में डाला जाता है, जबकि साबुत धनिया आचार और चटनियों में डाला जाता है। इनमें आयरन, कॉप्पर, कॅलशियम, पोटॅशियम, मॅन्गानीज़, झ़िन्क और मॅग्नेशियम काफि मात्रा में मिलता है और साथ में थायामिन, राय्बोफलावीन और नायासीन जैसे बी-विटॅमिन भी है। वातहर ओर पाचक कर्ता के रूप में उपयोग होता है।
ज़ीरा: ज़ीरा का इस्तेमाल लोग प्राचीन काल से करते आ रहे हैं। मिश्रित मसालों और करी पावडर का प्रमुख पदार्थों में से एक है। सब्ज़ियों, आचार, सूप, सॉसेज, चीज़ और बहुत सारे पकवानो में इसका इस्तेमाल होता है। और तो और इसे ब्रेड, केक और बिस्किट में भी डाला जाता है। ज़ीरा का तेल करी, मदिरा, पुष्टिकारक पेय और इत्र बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है। ज़ीरा का असर शीतल और हल्का होता है, और उसक लक्षण सूखा और हल्का सा गरम होता है जिस वजह से वह स्फुर्तिदायक होता है।
सौंफ: शायद आपको आश्चर्य होगा कि सौंफ बीज नहीं बल्कि फल है। वह जितना हरा होगा उतना ही उतकृष्ट होगा। सौंफ बहुत सारे पकवानों में स्वाद भर देता है। आयुर्वेद के अनुसार सौंफ शीतल और आरामदेह है और पेट की बिमारी के लिये उत्तम इलाज है। सौंफ पारम्परिक दवाइयों में डाला जाता है और ये प्रसूती के समय स्तन में दूध का उत्पादन करने में सहायक होता है। और ये प्रसूती का दर्द कम करता है और पाचन सुधारता है इसलिये ये गर्भवती स्त्रियों के लिये अच्छा होता है। खाँसी, कब्ज़, सर की जूओं के इलाज में भी लाभदायक होता है।
मेथी दाना: इतर मसालों के तुलना में से शायद मेथी दाने सबसे कम इस्तेमाल किये जाते हैं। ये बहुत ही पौष्टिक समझे जाते हैं और काफि बिमारियों के इलाज में उपयोगी होते हैं जैसे कि गले में खराश, गमोरिया, दर्द और मधुमेह। खास कर मधुमेह में अगर सहि मात्रा में लिया जाय तो मेथी दाना हाय्परग्लाय्सीमिया को कम करने में मदद करते हैं। नियमित रूप से इन्हें खाने से दूध का उत्पादन बढ जाता है इसीलिये दूध पिलाने वाली माँओ के लिये लाभदायक है। भले हि वे कडवे होते हैं, पर उनसे काफि सारे स्वादिष्ट पदार्थ बनते हैं जैसे कि मेथी लड्डू। ये लड्डू शीतकाल के दिनों में बनाए जाते हैं क्योंकि ठण्डी में ये लाभपरद होते हैं।
छोटी इलायची: राष्ट्रिय मसालों में छोटी इलयची दूसरी मुख्य मसाला है और इसे मसालों की रानी कहा जाता है। भारतीय पाक कृती में इलायची लोकप्रीय मसालों में से एक है और दुनियाभर में केसर के बाद सबसे महँगा है। इसका इस्तेमाल ज़्यादातर पकवानों में स्वाद और खुशबु देने के लिये होता है। इसका पावडर चाय में डालने से चाय बहुत खुशबुदार बनती है। इसका तेल कई प्रकार के मदिरा और इत्र में डाला जाता है। लगभग सभी आयुर्वेदिक खानेवाली दवाइयों में यह डाला जाता है ताकि वे खाने लायक हो जाए। जाने माने आयुर्वेदिक पुस्तकों से यह पता चलता है कि छोटी इलायची खाँसी, क्षय रोग और बवासीर के उपचार में लाभदायक है।
जायफल: एक स्वाद जो सबसे अलग है वो है जायफल का। यह छोटा बीज लाल जालिदार उगाई में लपेटा हुआ होता है जिसका स्वाद भी कुछ हद तक जायफल जैसा हि होता है बल्कि जायफल से थोडा ज़्यादा तीक्ष्ण होता है। यह तो हम में से ज़्यादातर लोगों को पता है कि जायफल थोडा शामक होता है। मुख्यत: जायफल का उपयोग होता है सॉसेज बनाने में, बेकिंग, सॉफ्ट ड्रिन्कस और औषधीय उद्योग में। पर इनका उपयोग मिष्टान, सूप, सॉस और कुछ नाश्तों में भी होता है। जायफल से मक्खन भी मिलता है पर इसका उपयोग सिर्फ उद्योग में चिकनाई के रूप में होता है।
जावित्री: जावित्री स्वाद से भरपूर मसालों में से एक है जो भारतीय पकवानों मे काफि इस्तेमाल किया जाता है। यह मोम जैसा लाल जालिदार उगाई है जो जायफल के चारों ओर होता है। जैसे जैसे जावित्री सूख जाती है उसका रंग नारंगी हो जाता है और उत्तम प्रकार की जावित्री का रंग बरकरार रहता है। भारत में ज़्यादातर इसका इस्तेमाल मोगलाइ खानों में होता है जब कि इटली में इसे पास्ता में भरने के लिये जो मिश्रण बनाते है उसमे डाला जाता है। अरब लोग इसे मट्टन में डालते हैं और युरोप के लोग इसे मीठा और नमकीन, दोनो पकवानों में डालते हैं। यह खाना पचाने में मदद करता है और मतली रोकता है। इसका इस्तेमाल करते वक्त सावधानी बरतें कयोंकि यह इसमें भ्रांतिजनक पदार्थ होते हैं जो अधिक मात्रा में सांघतिक रूप से विषैले हो सकते हैं। थोडे मात्रा में यह कोई हानी नहीं पहुँचाते हैं। इसका तेल अपनी विशेष खुशबु पुरुषों के लिये बनाने जाने वाले आफ्टरशेव और परफ्यूम में प्रदान करता है।
राइ या सरसों: पश्चिम, पूर्व और दक्षिण भारत में राई उतनी ही स्विकार्य है जैसे कि नमक। मिर्चों की तरह राई भी हमारे भूख को उत्तेजित करता है, पाचन में सहायता देता है और शिरानाल को साफ करता है। पश्चिमी देशों में जो मस्टर्ड सॉस इस्तेमाल किया जाता है वह जीभ और आँखों में एक प्रकार का अनोखा जलन पैदा करता है। अगर कुछ दिलचस्प और तीखी चीज़ है जो किसी भी सॅन्डविच या सॅलॅड को रोचक बना सकता है, तो वह है मस्टर्ड सॉस। प्राचीन काल में शायद माँस का सड़ा बास दबाने के लिये राई के दाने चबाए जाते थे। राई की खासियत यह है कि इसका तेज़ स्वाद, जो कच्चे बीज़ों को चबाने पर खुलता है।
कलौंजी: ये छोटी जरूर हैं पर गरम तेल में डालते ही इनकी खुशबु घरभर में फैल जाती है। अंग्रेज़ी में आनियन सीड्स कहते हैं पर यह नाम कैसे आया क्योंकि इनका अनियन्स याने कि प्याज़ से कोई लेना देना नहीं है। इनमें ऍन्टिहिस्टॅमिनिक गुण हैं जिस वजह से कई ऍलर्जी के इलाज में उपयोग किया जाता है। यह ऍन्टि-ऑक्सिडॅन्ट भी हैं और शरीर में से विषैले पदार्थ निकालने में मदद करतें हैं। इनका उपयोग मिष्टान और मदिरा बनाने में होता है। इसे करी, मुरब्बा या दाल में भी डाल सकते हैं। यह पाँच फोरन का एक हिस्सा है जो कि पाँच मसालों का मिश्रण है। दूसरे चार मसाले हैं ज़ीरा, सौंफ, राई और मेथी दाना। बँगाली पकवानों में इनका काफि इस्तेमाल होता है।
खसखस: खसखस मूलत: तिलहन है जो कि अफीम से मिलते हैं। अक्खा या पीसा खसखस का उपयोग मसाले जैसा, या सजावट कि लिये, या मिश्रण को गाढा करने के लिये होता है और कभि कभि मुख्य उपादान के रूप में भी होता है। जैसे कि खसखस की खीर। मिठे और नमकीन – दोनो पकवानों में खसखस का उपयोग होता है। अगर तरी को गाढा करना हो तो खसखस को पीसने के पहले भिगोना चाहिए। ये काफी पौष्टिक है कर्क रोग के दवाइयों मे उपयोग किये जाते हैं। इनमे काफि थायामिन, राय्बोफ्लॅविन और निकोटिनिक पाया जाता है पर कॅरोटिन नहीं होता है। आयोडिन, मॅन्गानिज़, कॉप्पर, मॅग्नेशियम और झ़िन्क थोडे मात्रा में मिले जाते हैं। इनमें ऑक्ज़ेलिक ऍसिड, लॅसिथिन और थोडा नार्कोटिन भी होता है। इनमे प्रोटिन काफी होता है। पर सावधान रहे और याद रहे इन्हें छोटे बच्चों, गर्भवती स्त्रियों या गुर्दे की बिमारी से पिडीत लोगों को नहीं देना चाहिए।
केसर: केसर दुनियाभर में सबसे श्रेष्ट और बहुमूल्य मसाला है। इसका उपयोग इसके उज्जवल नारंगी-पीली रंग और जोरदार, तेज़ स्वाद और खुशबु के लिये होता है। चूंकि इसका रंग जोरदार है और स्वाद भी तेज़ है इसका उपयोग बहुत ही थोडे प्रमाण में होना चाहिए। केसर रेशे के रूप में और पावडर के रूप में मिलता है। इनके रेशे ऍन्टिस्पॅस्मॉडिक होते है, साथ में पाचन में मदद करते है, और भूख भी बढाते हैं। गुर्दे का दर्द, पेट का दर्द कम करता है और मानसिक तनाव भी कम करता है। आजकल तो इसका उपयोग बुखार और अवसाद के इलाज में और शामिक जैसे भी होता है। बहुत सारे पकवानों में इसका उपयोग होता है जैसे भारतीय मिठाइयाँ, चीज़, सूप, चिकन, मट्टन, पास्ता, चावल और कुछ प्रकार के मदिरा। कुछ खास ब्रेड, केक और मोगलाइ पकवानों में भी केसर डाला जाता है।
तिल: कहा जाता है कि तिल सबसे प्राचीन मसाला है और शायद इसे उन दिनों में खाने लायक तेल के लिये उगाया गया था। बॅबिलॉन के लोग इसे तिल के केक, वाइन, ब्रॅन्डी और प्रसाधन सामग्री बनाने में उपयोग करते थे। उस जमाने में भी लोगों का विश्वास था कि तिल औषधीय है। कॅलशियम, विटॅमिन बी और ई, आयरन और झिन्क से भरपूर तिल में काफि प्रोटिन भी होता है और कोलेस्ट्रॉल बिलकुल भी नहीं। तिल का तेल वर्षों तक रहता है, गर्मी में भी खराब नहीं होता। यह पूरे एशिया में काफि लोकप्रिय है, खासकर तामिलनाडु में जहाँ इसे पकाने में इस्तेमाल करते हैं। यह सॅलॅड और आचार में डालने के लिये उत्तम है। जापान में लोग इसे मछली के पकवानों में इस्तेमाल करते हैं।
फूलचक्री: इसे बदियाँ भी कहते हैं। इसका आकार तारों जैसे होता है और इसकी खुशबु काफि हद तक सौंफ जैसे होती है। ज़्यादातर इसे अक्खा इस्तेमाल करते हैं, इसके आकार और स्वाद दोनो के लिये। यह सदाबहार पेड का फल जो कि चायना में पाया जाता है। यह पेड आठ मिटर तक बढता है और छह साल तक इसमे फल नहीं लगते। पर एकबार फल लगने शुरू होते हैं तो कम से कम सौ साल तक फल लगते हैं। पहले पीले रंग के फूल लगते हैं, उसके बाध भूरे फल लगते हैं, जो पकने पर खुलकर तारों का आकार लेते हैं। तारों के हर कोने पर एक चमकीला भूरे रंग का बीज होता है जिसकी खुशबु फली से कम होता है। यह चायनीज़ फाइव स्पाइस पावडर का एक प्रमुख हिस्सा है।
हल्दी पावडर: हल्दी मूल कहाँ से आती है यह तो नहीं मालूम पर प्राचीन काल से इसे पवित्र माना जाता है। प्रायत: उसे भारतीय केसर कहा जाता हैं। दाल, सब्ज़ी, खिचडी या चिकन करी में हल्दी स्वाद और रंग दोनो देती है। चीज़, सूखे मसाले, सॅलॅड ड्रेसिंग, मक्खन और मार्जारिन में भी यह रंग देती है। हल्दी सस्ते मसालों में से एक है और एक या दो चुटकी भर से ही अपना रंग दिखा देती है। हल्दी पर भारत को गर्व है क्योंकि दुनिया मे अस्सी प्रतिशत हल्दी भारत में उगती है। हल्दी में रोगाणु रोधक गुण है और अकसर इसे स्रावी रोकने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।