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बसंत पंचमी के साथ वसंत में आपका स्वागत है

जब ठंडे सर्दियों का मौसम आरामदायक वसंत में पिघल जाता है तब लोग बसंत पंचमी या वसंत पंचमी मनाते हैं। यह त्योहार हिन्दू महीने के माघ में मनाया जाता है, जो कि ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से जनवरी और फरवरी के महीनों के साथ आता है।

इसे स्प्रिंग फेस्टिवल भी कहा जाता है जो वसंत रितु (स्प्रिंग सीज़न) की शुरुआत का प्रतीक है। वसंत ताज़गी और जीवन के सभी क्षेत्रों में एक नई शुरुआत के साथ जुड़ा हुआ है।

 

यह कैसे मनाया जाता है

वसंत पंचमी एक प्रसिद्ध त्योहार है जिसमें बुद्धि, विद्या और ज्ञान की देवी, सरस्वती की पूजा की जाती है। युवा लड़कियाँ चमकीले पीले कपड़े पहनकर उत्सव में भाग लेती हैं। पीला रंग इस उत्सव के लिए एक विशेष अर्थ रखता है क्योंकि यह प्रकृति की प्रतिभा और जीवन की जीवंतता का प्रतीक है। त्योहार के दौरान चारों ओर पीला रंग दिखाई देता है।

लोग न केवल पीले रंग के कपड़े पहनते हैं, बल्कि देवी-देवताओं और दूसरों को पीले रंग के फूल भी देते हैं। वे एक विशेष प्रकार की केसर हलवा नामक मिठाई को आटा, चीनी, मेवे और इलायची पाउडर से बनाके खाते भी हैं। इस डिश में केसर के रेशों से स्वाद लाया जाता है, और जिसकी वजह से इसका पीला रंग आने के साथ-साथ एक भीनि-खुशबू और नाम भी दिया जाता है।

 

रीति और रिवाज़

त्योहार
कुछ लोगों का ऐसा मानना होता है कि वसंत पंचमी देवी सरस्वती का जन्म दिन है इसलिये इस दिन को वगीश्वरी जयंती पंचमी भी कहा जाता है। कुछ दूसरे लोगों का मानना है कि इस दिन देवी धरती पर दुर्गा के साथ दानव राजा महिशासुर का वध करने आईं थीं। कुछ लोग इस दिन ब्राह्मणों को भोज कराते हैं तो कुछ पित्रि-तरपण (पूर्वज पूजा) करते हैं और कुछ प्रेम के देवता कामदेव की पूजा करते हैं।

देवी सरस्वती के चार हाथ होते हैं जो अहंकार, बुद्धि, सतर्कता और मन के प्रतीक हैं। उन्होंने दो हाथों में कमल का फूल और शस्त्र पकड़े होते हैं और बाकी दोनों हाथों से वह वीना बजाती हैं। वह एक श्वेत हंस पर सवार होती हैं। उनका सफेद पोशाक पवित्रता का प्रतीक होता है। उनका हंस लोगों को बुरे से अच्छा विचार करने की क्षमता देने का प्रतीक है। कमल के फूल पर बैठीं देवी सरस्वती बुद्धिमत्ता का प्रतीक हैं।

बिहार और उड़ीसा के कुछ हिस्सों में इस दिन किसान हल की पूजा करते हैं और साथ ही एक बार फिर से खेतों की बुवाई शुरू करते हैं। ये कड़कड़ाती सर्दियों का भी अंत करता है और साथ में लाता है गर्म दिनों के जब खेतों में भी पीले सरसों लहलहाते हैं। इसलिये पीला रंग बसंत पंचमी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन लोग पीले कपड़े पहनने के साथ-साथ पीले फूलों के साथ देवी की पूजा करते हैं और पीले रंग से घरों को भी सजाते हैं।

इस दिन बेर और सान्ग्री मूख्य प्रसाद के रूप में दिये जाते हैं। बेर के पेड़ से बेर का फल मिलता है जो उत्तर भारत में बहुतायत में उगता है। सान्ग्री वे बीन्स् होते हैं जो मूली के बीज लिये हुये होते हैं। इन दोनों चीज़ों को एक थाली में थोड़े पीले बर्फी या लड्डू, पान, नारियल और सरसों के कुछ पत्तों के साथ रखा जाता है। एक दूसरी थाली भी पूजा की सामग्रियों के साथ, जैसे पानी, सिंदूर और पीले फूल, के साथ तैयार की जाती है। घर की स्त्री ही एक ज़री और गोटेवाली पीली पोशाक के साथ दोनों हाथों में पीली और लाल चूड़ियाँ पहनकर पूजा करती हैं और तब उत्सव शुरू होता है।

सभी भारतीय त्योहारों का उपवास और अनुष्ठानों के बाद एक महत्वपूर्ण हिस्सा भोज का होता है। गृहिणियां गरम चूल्हों पर कुछ ऐसी स्वादिष्ट पकवान बनाती हैं जो कुछ सबसे अधिक मांगों वाले स्वादों को उत्तेजित कर सकते हैं। बसंत पंचमी में पीला रंग प्रमुख होता है क्योंकि लोग केवल पीले रंग के कपड़े ही नहीं पहनते हैं बल्कि देवी को चढ़ाने के लिये बनने वाला भोजन भी पीले रंग का होता है। कुछ पारंपरिक घरों में पीले रंग की मिठाइयों का रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच लेन-देन भी होता है। उत्तर भारत के पसंदीदा हैं केसरी हलवा और मीठे चावल। मिठाइयों को पीला बनाने के लिये उनमें चुटकी भर केसर डाला जाता है।

केसरी शीरा: एक गाढ़ी केसर के स्वाद वाली मिठाई जिसे अधिक मात्रा में बादाम और काजू से सजाया जाता है।

केसरी भात: इस मीठे चावल का नाम केसर से आता है, जो इसे अपना रंग और स्वाद प्रदान करके अनोखा बनाता है।

केसरी राजभोग: छेने से बनी हुई मिठाई, जिसके मुलायम बीच में नट्स् की स्टफ्फिंग होती है और इसे केसर के स्वादवाले चीनी के चाश्नी में पकाया जाता है।

बूंदी के लड्डू: तले हुये और चीनी की चाश्नी में डुबोये हुये बेसन के छोटे-छोटे गोलों से बनी गोल मिठाई जिसे नट्स् से सजाया जाता है।

बेसन के लड्डू: भुने हुये बेसन और पीसी हुई चीनी से बनी गोल मिठाई।
नारियल की बर्फी: एक गाढ़ा केसर के स्वाद वाला नारियल से बना फज्।

लाल कद्दू खीर: लाल कद्दू और केसर के स्वादवाले दूध से बनी नट्स् से सजाई हुई स्वादिष्ट मिठाई।

कांचिपुरम इडली: केले के पत्तों में स्टीम किये हुये हल्दी पावडर के स्वादवाले चावल के केक जिन्हे सांभर और चटनी के साथ परोसा जाता है।

खमन धोकला: राई और नारियल से तड़के दिये हुये चने के फरमेन्टेड बैटर से स्टीम करके बनाये हुये नमकीन केक जिन्हे चटनी के साथ परोसा जाता है – गुजरात का ख़ास पकवान

खिचड़ी: मसालेदार घी से तड़केवाला चावल और धुली मूंग दाल से बना पौष्टिक मिश्रण।

परंपरागत रूप से एक बच्चे की बुनियादी शिक्षा इस दिन पर शुरू की जाती है देवी को प्रार्थना समर्पित किया जाता है और आशीर्वाद मांगी जाती है। कॉलेजों और स्कूलों में देवी सरस्वती की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। कई कॉलेजों, स्कूलों और अन्य शिक्षण संस्थानों में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। पंडित मदन मोहन मालवीय ने बसंत पंचमी पर काशी हिंदू विश्व विद्यालय की नींव रखी थी। यह अब एक विश्व प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्थान बन गया है।

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Chef Sanjeev Kapoor is the most celebrated face of Indian cuisine. He is Chef extraordinaire, runs a successful TV Channel FoodFood, hosted Khana Khazana cookery show on television for more than 17 years, author of 150+ best selling cookbooks, restaurateur and winner of several culinary awards. He is living his dream of making Indian cuisine the number one in the world and empowering women through power of cooking to become self sufficient. His recipe portal www.sanjeevkapoor.com is a complete cookery manual with a compendium of more than 10,000 tried & tested recipes, videos, articles, tips & trivia and a wealth of information on the art and craft of cooking in both English and Hindi.