रामनवमी
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19 अप्रैल को रामनवमी है, जो चैत्र महीने के नवें दिन पड़ता है, यह शुक्ल पक्ष के नए चंद्रमा के नवें दिन होता है। इस दिन भगवान विष्णु के नवें अवतार श्री राम का जन्म हुआ था। पूरे देश भर में रामनवमी मनाया जाता है, जो साधारणतः अंग्रेज़ी के अप्रैल महीने में पड़ता है।
कहानी इस प्रकार है: राक्षसों के राजा रावण ने भगवान ब्रह्मा से कई वरदान प्राप्त कर लिये और खुद को अजय समझने लगे और बहुत अहंकारी हो गए। भविष्य की बात बिना सोचे वे पृथ्वी और देवलोक से धर्म को नष्ट करने लगे। राक्षस राज रावण के अत्याचार से तीनों लोक त्रस्त हो गया। देवों ने भगवान ब्रह्मा से इस अत्याचार को रोकने के लिए कहा। लेकिन ब्रह्मा असहाय थे क्योंकि राक्षस राजा रावण को एक मनुष्य ही हरा सकता है, उसी पर सब निर्भर थे। रावण को वरदान प्राप्त था कि देवता द्वारा उन्हें मृत्यु नहीं प्राप्त होगी। लेकिन अहंकार वश उन्हें इस बात का ज्ञान ही नहीं रहा कि उन्हें मनुष्य से सुरक्षा की ज़रूरत है क्योंकि उन्हें महसूस होता था कि उनकी शक्ति अतुलनीय है।
इसलिए ऐसे मनुष्य की सृष्टि को ज़रूरत थी जो रावण से शक्तिशाली हो और उसको हरा सके। जब ब्रह्मा इस समस्या पर विचार कर रहे थे तब भगवान विष्णु अपने वाहन गरूड़ पर चढ़कर आए और ब्रह्मा ने उन्हें राम का अवतार लेकर राक्षस राज से निपटने के लिए कहा। भगवान विष्णु ने सहमती प्रदान की, क्योंकि त्रेता युग में उन्होंने दशरथ और कौशल्या से यह वादा किया था कि वह उनके पुत्र के रूप में आयेंगे। उन दोंनो ने पिछले जन्म में घोर तपस्या की थी और भगवान विष्णु से प्रार्थना की थी कि वे पुत्र रूप में उनके पास आए और उन्होंने सहमति प्रदान भी की थी। अतः इस प्रकार भगवान राम का जन्म हुआ।
भगवान राम धार्मिकता, धैर्य, सत्य और निर्भयता के सार हैं। वे सुदृढ़ विचार, सत्पुरूष, शाँत प्रकृति, बुद्धिशील, मोहक और अच्छे धनुषधारी के रूप में दर्शित होते हैं। वे अपने कहे गए वाणी पर अडिग रहते थे और यह उक्ति “रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन निभायें” ‘रघुकुल वंश के लिए उदाहरणस्वरूप है कि एक बार जो कह दिया गया उसे किसी भी कीमत पर पूरा करना है, चाहे जान भी चली जाए’। स्वामी विवेकानंद भगवान राम की व्याख्या आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श पिता और उससे भी ऊपर आदर्श राजा के रूप में करते हैं। आज भी राम राज्य, किसी भी राजा के लिए आदर्श नियम है।
रीति-रिवाज़
राम का जन्म दोपहर को हुआ था इसलिए सारे रीति-रिवाज़ दोपहर को ही होते हैं मगर तैयारी सुबह से ही शुरू हो जाती है। लोग राम, सीता और लक्ष्मण को खुश करने के लिए भजन गाते हैं। चौकोर मूर्तितल या खम्बे की चौकी पर उनका फोटो या मूर्ति गणेशजी के साथ रखा जाता है। पूरे जगह को फूलों से अलंकृत किया जाता है और भगवान की पूजा कूमकूम, चावल और फूलों से की जाती है। प्रसाद और चरणामृत भगवान को चढ़ाया जाता है और पूजा के बाद भक्तगणों में बाँटा जाता है। प्रसाद में कसर (रवा का मीठा व्यंजन), चरणामृत/पंचामृत (जो पाँच सामग्रियों से बनता है - दूध, दही, शहद, चीनी, जल) मूर्ति का पैर इस मिश्रण से धुलाया जाता है इसलिए इसे चरणामृत कहा जाता है, फल, मिठाई भी रहता है।
सभी लोग बैठकर राम नाम जपते हैं। ठीक बारह बजे भगवान राम के जन्म की उद्घोषणा मूर्ति पर संदेशवाहक फूलों की वर्षा करके करता है। शंख बजाकर जन्म की उद्घोषणा होती है और इसकी ध्वनी पूरे माहौल को भव्य बना देती है। आरती बारी-बारी से की जाती है। गीत शुरू होता है, कपूर जलाया जाता है और एक साथ लोग श्लोक का उच्चारण करते हैं। थोड़ा गंगा जल या सादा पानी भगवान के आर्शिवाद स्वरूप परिवारजनों पर छिड़काया जाता है।
त्यौहार पूरे भक्तिभाव से मनाया जाता है। भगवान राम का जन्म नाटकीय रूप में होता है। एक मूसल को लाल कपड़े से ढक कर पालने में फूलों से सजाकर रखा जाता है। सभी औरतें भगवान राम का मंत्रजाप करते हुए पालने को झुलाती हैं।
श्री राम के धार्मिक स्थलों में अयोध्या, उज्जैन और रामेश्वरम है वहाँ इस समय हज़ारों में भक्तगण जाते हैं। रामेश्वरम में हज़ारों लोग समुद्र में रीति-रिवाज़ के साथ नहाने के बाद रामनाथस्वामी मंदिर में पूजा करते हैं। उत्तरी भारत में कई जगहों पर इस त्यौहार से संबंधित मेला का आयोजन किया जाता है, जहाँ सुंदर पटाखों का काम अपनी पराकाष्ठा पर होता है।
उपवास को सही रूप प्रदान करें
उत्कृष्टता के लिए बहुत लोग इस पवित्र दिन पर उपवास करते हैं। कई भक्त तो नौ दिनों तक उपवास करते हैं, उगादी से रामनवमी तक। उपवास भगवान से विशेष अनुग्रह के लिए नहीं बल्कि उत्कृष्ट मनुष्य बनने के लिए की जाती है। उपवास के दौरान विशेष भोजन और फल खाया जाता है, वह भी दोपहर को। मिठाई तो अनिवार्य अंग होता है। कुट्टू या सिंघारा के आटे की पूरियाँ बनाई जाती हैं। दही, चाय, कॉफी या दूध भी लिया जा सकता है।
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