एक दिन भोर के समय गुरु नानक मरदाना के साथ बेन नदी पर नहाने गए थे। नदी में उतरने के बाद गु्रु नानक नहीं मिले और यह सूचना दी गई कि वह डूब गए है। गाँव वाले उन्हें सभी जगह ढूँढे, लेकिन उनका कोई पता नहीं चल सका। गुरु नानक ईश्वर के साथ धार्मिक विचारों का आदान-प्रदान कर रहे थे। ईश्वर ने गुरु नानक के समक्ष सारा रहस्य खोल दिया और उनका ज्ञानोदय किया।
तीन दिन बाद गुरुनानक उसी स्थान से बाहर निकले जिस स्थान से वे गायब हुए थे। वे पहले के तरह के इंसान नहीं रह गए, उनके आँखों में दैवी प्रकाश थी और उनका चेहरा जाज्वल्यमान था। उन्होंने अचैतन्य से होश में आने के बाद कुछ भी नहीं कहा। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दिया और अपना सबकुछ गरिबों में बाँट दिया। आखिरकार उन्होंने चुप्पी तोड़ी और कहा: “न कोई हिन्दु है और न कोई मुसलमान, सभी मनुष्य हैं”।
1494 में वे तीस साल के हो गए थे। उनके जीवन का दूसरा चरण शुरु हुआ, वे घूम-घूमकर भगवान का संदेश देने लगे। मरदाना को साथ लेकर लंबी यात्रा करने लगे और स्तुति के रुप में वे लोगों तक अपना संदेश पहुँचाने लगे। उन्होंनें गीत का माध्यम इसलिए चुना क्योंकि उस वक्त लोग आसानी से समझ जाते थे। वे जहाँ भी यात्रा करते थे, वे संदेश देने के लिए वहाँ के स्थानीय बोली का प्रयोग करते थे।
उन्होंने भारत के सभी उपमहाद्विपों की यात्रा की और पूर्व, पश्चिम और उत्तर में भी अपने ज्ञान को फैलाया। जहाँ भी वे गए वहाँ छोटा मठ बनाया, जो ‘मनजीस’ कहलाता था, जहाँ उनके अनुयायी स्तुति गान और ध्यान करते थे।
अपना संदेश लोगों तक पहुँचाकर अपनी पहली यात्रा खत्म कर बारह साल बाद वे वापस घर लौटे। अपनी दूसरी यात्रा वे दक्षिण, श्रीलंका के तरफ किए। वहाँ से लौटते वक्त करथारपूर (प्रभु का वासस्थान) पश्चिम में रावी नदी के तट पर डेरा जमाया। वृद्धावस्था में वे यहीं रहते थे।
उत्तर में तिब्बत की ओर उन्होंने तीसरी यात्रा की। जहाँ भी वे जाते थे हिन्दु मुस्लिम धार्मिक लोगों की तरह वेशभुषा पहनते थे, उनसे सभी पूछते थे कि वे हिन्दु है या मुस्लिम। वहाँ से लौटते वक्त पश्चिमी पंजाब के सैदपूर में वे रुके, जहाँ मुगल सम्राट बाबर ने चढ़ाई की थी। चढ़ाई के बाद के विभत्स अवस्था को देख कर मरदाना ने पूछा क्यों कुछ दोषी लोगों के लिए इतने सारे निर्दोष लोगों को भुगतना पड़ता है। उन्होंने मरदाना को केले के पेड़ के नीचे खड़े रहने को कहा और कहा कि मैं थोड़ी देर के बाद आकर तुम्हारे प्रश्न का जवाब देता हूँ। केले के पेड़ के नीचे बैठे रहते हुए एक चीटीं ने उन्हें काटा। गुस्से में आकर मरदाना ने अपने पैर के पास के सारे चिटियों को मार डाला। नानक ने वापिस आकर कहा, “अब बात समझ गए हो मरदाना, क्यों दोषी के साथ निर्दोष मारे जाते हैं?
विदेशों में बहुत साल यात्रा करने के बाद उनकी उम्र भी हो गई और वे पंजाब लौट आए, अपनी पत्नी और लड़कों के साथ वे करथारपूर में रहने लगे। तीर्थयात्री दूर-दूर से आते अपने प्रभु के स्तुतिगान और धार्मिक व्याख्यान को सुनने के लिए। यहाँ उनके अनुयायी सुबह और दोपहर को एकट्ठा होते थे। वे किसी भी जाति या समाज के विभेद को नहीं मानते थे, जन्म, धर्म, लिंग किसी में कोई विभेद नहीं था। सिक्खों के सर्वसामान्य रसोईघर को लंगर कहते हैं। सभी एक साथ बैठकर खाते हैं, राजा हो या रंक।
उनके देहावसान का समय नजदीक है जानकर हिन्दु और मुस्लिम में द्वन्द्व छिड़ गया। हिन्दु जलाना चाहते थे और मुस्लिम कब्र देना चाहते थे। गुरुनानक ने यह कहकर समस्या का समाधान किया कि “आप फूलों को मेरे दोनों तरफ रखो, हिन्दु मेरे दाहिने तरफ और मुस्लिम मेरे बाईं तरफ। कल जिसका फूल ताज़ी रहेगी, वही अपने मतानुसार मेरा दाह-संस्कार करेगा’’। उन्होंने शरीर को कपड़े से ढक देने के लिए कहा और प्रार्थना करने के लिए कहा। 22 सितम्बर, 1539 को प्रभात में गुरुनानक ईश्वर के दैवी प्रकाश में लीन हो गए। जब अनुयायियों ने चादर को उठाया तो पाया कि सारे फूल ताज़े हैं। हिन्दुओं ने अपने तरफ के फूलों को जलाया और मुस्लिमों ने अपने तरफ के फूलों को दफनाया।