चैत्र महीनें के पहले दिन नए साल के शुरूआत के रूप में गुड़ी पड़वा मनाते हैं। एक डंडे में पीतल का बर्तन उलटकर रखते हैं जिस पर सुबह की पहली किरण पड़ती है, गहरे रंग की रेशम की साड़ी, फूलों के माला से सजाया जाता है। आम पत्ता और नारियल से घर के बाहर उत्तोलक के रूप में टाँगा जाता है। यह वसंत ऋतु का आगमन का प्रतीक होता है यह अंग्रेजी के मार्च-अप्रैल महीनें में आता है, महाराष्ट्रियनों के लिए गुड़ी पडवा पवित्र दिन होता है। इस दिन विवाह, गृहप्रवेश या नए व्यापार का उद्घाटन के लिए शुभ होता है। इस दिन सोना, चाँदी या सम्पदा खरीदा जाता है। इस साल अप्रैल महीनें के ग्यारहवें दिन गुड़ी पडवा मनाया जाएगा। सूर्य अपने पूरे तेज़ से चमकता है और किरणों के तेज़ से गर्मी इतनी बढ़ती है कि जैसे जाड़े को गला का खत्म कर देगी। इसी समय किसानों का फसल काटने के लिए पक कर तैयार हो जाता है। हवा में पके आम और कटहल की महक तैरने लगती है। पेड़ पर बहार आ जाती है और उसकी महक पूरे हवा में फैल जाती है। गहरे रंग और गंध की धूम वसंत के आगमन के समय को संकेत करती है और मौसम अपनी पूरी सम्पदा दान कर देता है।
ब्रह्म पुराण के अनुसार, यही वह दिन है जब भगवान ब्रह्मा ने संसार की सृष्टि जलप्रलय के बाद की थी और इस दिन के चौथे दिन से समय शुरू हुआ था: सत्युग (सत्य और न्याय का युग) की शुरूआत हुई थी। एक दूसरी दंतकथा है गुड़ी पड़वा को लेकर कि भगवान राम ने अयोध्या विजय से लौटने के बाद राजा बाली को खत्म किया था। भगवान विष्णु ने भी इसी दिन कहा था कि वे मत्स्य के रूप में अवतार लेंगे।
सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक महाराष्ट्रियनों के घर के बाहर गुड़ी को देखा जाता है। गुड़ी की पूजा चंदन, हल्दी और सिंदूर से की जाती है। फिर आस-पास के लड़के और पुरूष एक साथ मिलकर पिरामिड बनाते हैं और कोई एक व्यक्ति पिरामिड के ऊपर नारियल को फोड़ता है जो कलश में रहता है। महाराष्ट्रियनों के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज के मराठा सेना के विजय का प्रतीक गुड़ी है। गुड़ी घर में बुराई को रोकता है और समृद्धि और सौभाग्य का आगमन करता है। पड़वा शब्द संस्कृत के प्रदुर्भ या प्रतिपद से आया है जिसका मतलब चंद्रमा के महीने का पहला दिन है।
गाँव के घरों में लोग उनके घरों और आंगन को बुहारकर साफ करते हैं और ताज़े गोबर से लेप लगाते हैं। शहरों में लोग घर साफ करते हैं। सवेरे औरतें द्वार पर रंगोली बनाती हैं और हर कोई नये कपड़े पहनते हैं। यह दिन आनंद और उत्साह का दिन होता है। परम्परागत रूप से, परिवारजन कड़वा नीम का पत्ता खाकर दिन की शुरूआत करते हैं। यह माना जाता है कि नीम का पत्ता, जीरा, गुड़ और नमक का पेस्ट रक्त को साफ करता है और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। व्यंजनों में पुरनपोली, सोंठ पाक, श्रीखंड पूरी और चना उस्सल इस दिन बनाया जाता है और खाया जाता है।
आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में यह दिन उगादी के रूप में मनाते हैं। यहाँ भी लोग दिन की शुरूआत कड़वे नीम के पत्ते गुड़ या चीनी के साथ खाकर शुरू करते हैं। कड़वा मीठा स्वाद यह याद दिलाता है कि जीवन का मीठा और कड़वा अनुभव ईश्वर की दया समझकर गौरव के साथ मान लेना चाहिए। इस दिन विशेष तरह का खाना बनाया जाता है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में खट्टा और मसालेदार इमली का चावल जिसको कन्नड़ में पुलियोगारे कहते हैं और तेलगु में पुलीहोरा बनाया जाता है। होलीगे नाम का मीठा (जो पुरनपोली का ही एक रूप है) बनाया जाता है।
वसंत का आरंभ नए जीवन का ईश्वरीय प्रतीक है। युगादी धर्म और विज्ञान की मंजुरी है। प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ ने बहुत बड़ी गणना करके चैत्र सुगंध पद्दयामी या युगाडी में सूर्य उदय के समय नए साल का आरंभ बताया था। यह चंद्रमा के उस दिन अपने कक्ष के बदलने के दृटान्त पर आधारित है। युगादी दो शब्दों के मेल युग (युग) और आदि (शुरूआत) से बना है। यह त्यैहार होली से ही शुरू होता है, जो पुराने के खत्म होने को बताता है। भक्तगण इस दिन विशेष प्रार्थना करते हैं और मंदिर में दान देते हैं। लोग युगादी के पवित्र दिन कुछ नये की शुरूआत करना अच्छा मानते हैं। इस दिन कुछ लोग घर साफ करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। वे नए साल में समृद्धि की प्रार्थना करने के लिए मंदिर जाते हैं और वार्षिक कैलेन्डर – ‘पंचाङ्ग सर्वनाम’ सुनते हैं, जो पंडित का नए साल के बारे में अनुमानित भविष्यवाणी होती है। इस दिन दूरभाष और दूरदर्शन में पंचाङ्ग पढ़ा जाता है। भारत के दूसरे त्यौहारों की तरह इस दिन भी स्वादिष्ट व्यंजनें बनाई जाती हैं और मित्रों और रिश्तेदारों में बाँटी जाती हैं।
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